Sunday, October 27, 2013

बावर्ची

पर कह 


काली टोपी ,बड़ी हुई दाड़ी ,लाल व नीला रंग का एप्रिन पहिने एक बुजुर्ग सा आदमी को रसोई घर मे देख कर किरन बोली "अरे दीदी यह नयामें कब रख लिया । कितने वेतन पर रखा है । अगर,समय हो तो मेरे घर पर भी काम कर ले । आज कल नवजात शिशु के कारण काम बहुत बढ गया है । कमर में दर्द भी रहता है । काफी देर तक रसोई में खड़ी नहीं रह पाती हूँ । विक्रम को समय से नास्ता ,खाना नहीं मिल पाता है । अरे यह क्या कह रही हो । यह तो तुम्हारे जीजा जी है । क्या पहचान नहीं पाई । पिछले शुक्रवार को ऍम ;जी रोड मॉल में बहू के साथ गई थी । बुरा हो नगर -निगम वालो का जगह -जगह सड़क खोद कर रख देते है । प्रकाश की भी कोई वयस्था ठीक नहीं है । पैर में एड़ी के पास फ़्रक्चेर हो गया । चलना -फिरना मोहाल हो गया । घर के काम के लिये एक कामवाली को बोला था परन्तु वह नहीं आई । शायद ज्यादा नखरे करने के कारण या पता नहीं किसीके भड़काने के वजह से वोह काम पर नही आयी । अब तो एक समस्या आ गई । बेटा व बहू दोनों सुबह जल्दी निकल  जाते है और रात में भी देर हो जाती है । prievat नौकरी में तो यही होता है । होटल व बाज़ार का खाना -नास्ता से कब तक गुजर होती । डाक्टर को दिखाया तो एक माह का आराम बताया । तब तेरे जीजा जी ने रसोई का काम व घर का काम.बाजार का काम मेरी तीमारदारी का भार उठया । सच ही ये खाना -नास्ता बहुत ही स्वाद वाला तथा तन्मयता से बनाते है । कुछ -कुछ गुनगुनाया भी करते है । अभी जब तुम इनके हाथ का नास्ता व चाय पियोगी तो खुद ही समझ जाओगी । अब बोल.जब मेरा पैर ठीक हो जायगा तो इस बावर्ची को तेरे घर भेज दू -कल्पना ने खिलखिलाते हुया कहा । किरन ने शर्माते हुए कहा दीदी आप भी 

Thursday, October 24, 2013

सुबह की सैर

ज़िन्दगी की एक रात और बीत गई। नीरव , शांत एकान्त , शीतकाल का प्रारम्भ , जब दरवाज़ा खोल कर बाहर आया।  हवा में हलकी- हलकी ठण्ड थी। धुंधलका सा फैला था।  निशा जा चुकी थी।  प्राची दिशा में कुछ - कुछ लालिमा उभर रही थी।  रवि का प्रसव - काल था।  बाल रवि जन्म लेने को मचल रहा था।  देखते ही देखते सुनहरा  प्रकाश वृक्षों व गगन चुम्बी इमारतों की पृष्ट भूमि में दृष्टिगोचर होने लगा।  

दैनिक क्रिया से निपट कर हम घर से बहार मैदान में निकल आये। मेरी देखा देखी दिनेश भी गगन रूपी मैदान में चहल कदमी करने लगा।  संसार का काम - धाम प्रारंभ हो गया।  सामने देखा की एक सभ्रांत महिला स्पोर्ट्स साइकिल में पैडल मरती तेजी से जा रहीं हैं।  इनका उद्देश प्रातःकालीन  व्यायाम है। 

दूसरी ओर एक स्त्री भी साइकिल से जा रही है।  इनका उद्देश किसी के घर पर पहुच कर बर्तन चौक झरन पोछन  कर जीविका चलाना है।  ट्रैकिंग सूट व बूट में एक युवक तेजी से साइकिल चला कर पास से निकला।  दूसरी और एक नौजवान साइकिल के हैंडल में एक प्लास्टिक की बाल्टी लटकाए गुज़रा।  पता किया की घर दूर है।  बंगलो में साहब लोगो की कार साफ़ करने का काम करता है।  एक के लिए साइकिलिंग शौक व व्यायाम है।  दूसरे के लिए मजबूरी।   सामने से दो अधेढ  पुरुष साइकिल से आ रहे थे।  उनमें से एक पुरुष अच्छे वैभवशाली परिवार का लगता था।  उनका भी उद्देश व्यायाम करना ही है।  दूसरा पुरुष सुरक्षा गार्ड की वर्दी पहने था।  उनीदी आखों से लगता था की किसी बंगले से कार्य समाप्त कर अपने घर की ओर  जा रहा है. 

अरे यह क्या है ? साइकिल के कैरिएर की दोनों ओर जुटे के बड़े बड़े थैले लटकाए उन्हें ठसा ठस कागज़ों से भरे तेज़ी से चला आ रहा है।  पास आया तो यह ज्ञात हुआ की यह अखबार बाटने वाला हौकर है।  यह तो अच्छा काम है।  काम का काम ऊपर से व्यायाम एक ही साथ दोनों कार्य संपन्न हो रहे है।  

अभी कुछ ही दूर बढ़ा था की देखा कि टहलने वालों में कुछ के हाथों में एक ओर ज़ंजीर दूसरी ओर स्वान है।  किसिम - किसिम के स्वान , कही तो बड़ा बुल-डॉग, कही छोटी छोटी पमेलिअन, भूरे , काले, चितकबरे , बड़े बालो वाले , चिकनी त्वचा वाले विभिन्न प्रकार के स्वान , लगा की डॉग शो देख रहे है।  

यह क्या? एक स्थूल काया की सभ्रान्त महिला , एक स्वान को ले कर जा रही है।   स्वान उन्हें खीच रहा है।   यह पता नहीं चलता की वह स्वान को टहला रही है या स्वान उन्हें सैर करने निकला है।  

दूसरी ओर  एक सज्जन एक स्वान को लेकर चले आ रहे थे।  साथ ही में एक ओर एक व्यक्ति जो दूसरी ओर एक स्वान की ओर  आ रहे थे।  अपने अपने स्वान को वह अपने और खीच रहे थे।   दोनों स्वान एक दुसरे को सूंघने लगे और एक दुसरे से कुछ बात करने लगे।  वैसे प्रायः एक स्वान दुसरे स्वान को देख कर भौकता है परन्तु यहाँ तो कुछ दूसरा ही नज़ारा था।  कुछ कौतुहल उत्पन हुआ।  मैं कल्पना करने लगा की वोह क्या बातें कर रहे होगे।  यहाँ हम पुरुष स्वान का नाम विलियम और स्त्री स्वान का नाम पूनम रख देते है।  परस्पर व्यहार से लगता था की वह प्रेमी - प्रेमिका है।  वक्त की मार ने उन्हें बिलग कर अलग अलग मालिको के हवाले कर दिया है।  

विलियम ने कहा , "पूनम आज कल तुम कुछ दुबली दिख रही हो।  ठीक से खाती पीती नहीं हो।"  "क्या करें , हमारे मालिक बाजपाई जी पूर्ण शाकाहारी है।  मॉस मछली का तो नाम लेना ही गुनहा  है ।  हाँ तुम तो काफी सेहत मंद लग रहे हो " कुछ उदास होते हुए पूनम बोली।  

"यह तो है हमारे मालिक रिचर्ड शर्मन तो रोज़ मांसाहार करते है।  काफी हडियाँ और मॉस खाने को उपलब्ध रहता है।  "

सडकों  पर धीरे धीरे स्कूल बसों का आवागमन बढ़ गया।  जगह जगह स्त्री पुरुष अपने बचो के साथ स्कूल बस की प्रतीक्षा में खडे दिखे।  मैं कल्पना करने लगा की मैं कब प्रतीक्षा करूंगा।  रवि अपनी लालिमा छोड तेज प्रकाश के साथ चमकने लगा।  हम भी घर की ओर लौट चले।