Tuesday, December 31, 2013

मुज्जफ़रनगर के दंगों का दर्द्र ====================

दिनांक 31 दिसम्बर 2013
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मुज्जफ़रनगर के दंगों का दर्द्र
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हिन्दु -मुस्लिम -सिख -  ईसाई,
आपस में  है सब    भाई - भाई।

सदियों से फ़िजा में,
यही आवाज़ तैरती आई।
पता नहीं क्यों,
वैमनस्ता की
कैसे धुंध छाई।

पहले तो अपनों ने ही,
दंगों में हमें उजाड़ा।
फिर तो नन्हें -नन्हें,
बच्चों को ठण्ड ने मारा।

फिर पक्ष --विपक्ष में,
होने लगी राजनीति,
मरी  इंसानी यत,
शेष बेतुके  बयानों ने मारा। . 

"आम -चुनाव - 2014 " ===============

दिनांक 31 दिसम्बर 2013
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"आम -चुनाव - 2014 "
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यह युद्ध  आर -पर   है
अन्तिम    अब  प्रहार है
मोदी ने की हाहाकार  है
कांग्रेसः की भी ललकार है।

था अग्रेजों भारत छोड़ो
का उद्घोष
विदेशी सत्ता के लिये।
है काग्रेस भारत छोड़ो,
मोदी का आवाहन,
देशी कांग्रेसी यो के लिये,

सुनते आये थे
सत्य मेव जयते,
का नारा अब तक।
होगा सत्य,
श्रम मेव जयते
का नारा कब तक।

दे रहें हार का पैग़ाम -------------- =======================

दिनांक 31 दिसम्बर 2013


मुज्जफ़रनगर,
के सवालों पर,
भड़क उठे अखिलेश।
जब भड़क उठेगा,
आम -आदमी
तो "सपा "का,
न बचेगा अवशेष।

हुयी शिविरो में बदइंतजामी,
सच्चाई को करो स्वीकार,
सुरक्षा,न्याय,व राहत,
पाने का हर एक,
है अधिकार।

कुछ पदाधिकारी,
विधायक व मन्त्री गण,
हो रहे है बेलगाम।
आने वाले चौ दह के समर में
दे रहे हार का पैगाम। .

"मेरा पूरा देश ------------- ==============

30 दिसम्बर 2013

सबसे सुन्दर है,
भारत देश हमारा।
राहुल ने दिया।
एक मन -मोहक नारा।

काग्रेस का हाथ.
आम आदमी के साथ।
आम आदमी ही है,
अब "आप"के साथ।

अब आम आदमी,
का है यह सन्देश,
अभी जीता दिल्ली को,
अब है मेरा पूरा देश। . 

Saturday, December 28, 2013

"होगी दिल्ली सुरक्षित ;;;;;;;;;;;;;;;

दिनांक 28 दिसम्बर 2013 समय 3 बजे "आप "मंत्रीमंडल के शपथ लेने के बाद
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लाल -नीली बत्तियों का,
दिल्ली में पड़ गया अकाल।
एक वर्ष के अन्दर ही,
"आप"ने कर दिया कमाल।
आम -आदमी की धूम है,
गली -गली में मच गया धमाल।

यह क्यों हुआ,क्या हुआ,
कैसे हुआ ?ये खिलवाड़।
हर राजनैतिक दल पूछ रहा,
है अपनों से यह सवाल।

सुरक्षा लेने को मंत्रियों ने,
कर दिया है इन्कार,
होगी दिल्ली सुरक्षित,
इस पर है पूर्ण   विचार।
भ्रस्टाचार  मिटाने का  तो,
ले लिया पुनः सकंल्प,
है यही शाश्वत  सत्य,
न समझे  इसे   कोई  गल्प। ।

अनुभूतियाँ : जगंलों में ही तो रहते है।

अनुभूतियाँ : जगंलों में ही तो रहते है।: बेंगलूर 22 नवम्बर 2013 दिन शुक्रवार मार्ग शीर्ष कृस्न पक्ष पंचमी सवत २०७० स्थल ;-सी 902 नागर्जुन। महादेवपुरा ============================...

Friday, December 20, 2013

जगंलों में ही तो रहते है।

बेंगलूर 22 नवम्बर 2013 दिन शुक्रवार मार्ग शीर्ष कृस्न पक्ष पंचमी सवत २०७०
स्थल ;-सी 902 नागर्जुन। महादेवपुरा
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"आदि -मानव जंगलों में रहता आया था।
हम आज भी तो जंगलों में ही रहते है।
वे रहते थे ,हरे -भरे जंगलो में,
हाँ,हम रहते है।
कंक्रीट के जंगलों में।

उन्हें मिलते था,मुफ्त हवा,पानी और फल। .
हम भुगतान करते है,
सभी सुविधाओ का,
कुछ का तो न ही है कोई हल।

वे रहते थे आपस में,
मिल -जुल।
अब नही है समय,
अपनों के लिए भी
पल दो पल 

प्रकाशनार्थ :-विद्युत सब स्टेशन निर्माण हेतु भूमि -पूजन ==============================


गुडगाँव 2 0 दिसम्बर : हरियाणा विद्युत प्रशारण निगम लि ० की ओर से सेक्टर 57 में 220 किलोवाट के सबस्टेशन निर्माण हेतुशास्त्रीय ढ़ग से भूमि -पूजन किया गया। निर्माण के देवता श्री विश्वकर्मा के चित्र के समुख हवन आदि कर पूजा संम्पन हुई।

निगम के वरिष्ट अधिकारी आर ० के ० गोयल ने नारियल फोड़ कर कार्य शुभारम्भ कराया। चर्चा के मध्य श्री गोयल ने बताया कि प्रोजेक्ट की लागत 25 करोड़ है। इसका निर्माण पन्द्रह माह में करा लिया जायेगा।




श्री गोयल नारियल फोरडते 



Thursday, December 19, 2013

***************************************सोनिया की सीख *************


हार से हताश,
होने की जरूरत नही।
जितना खो चुके है हम,
उसपर रोना नही।
गिर -गिर के जो उठता,
है वीर सेनानी वही।

सोच लो आज से तुम,
सब गलत है,
केवल हम है सही।
करे न करे,छोड़ दो
इस सोच को।
रहो अनुशासन में सदा,
अब गुटबाज़ी नही।
दस वर्षो के विकास को,
जनता के मध्य,
बखानो तो सही।

दो हजार चौ दा के समर में
नाव कांग्रेसः की उबारो तो सही। 

जलाओ मशाल ,बड़ा अधेरा है====================

 अरे कोई मशाल जलाओ ,
बड़ा अधेरा है।
भुखमरी है ,बदहाली है,बेकरी है।
महगाई है,भ्रस्टाचार है,बेजारी है।
गरीबी व अमीरी,बीच बड़ी खाई है।
दुरजनों के मध्य,फसी नारी है।
आओ हम सब मिलकर,
जलाए मशाल,
बड़ा अधेंरा है।

Wednesday, December 18, 2013

"न बदली है सोच ,न बदला है नजरिया " ==========================

न बदली है सोच ,न बदला है नजरिया। 
कुछ आदमी है गिद्ध ,कुछ है भेड़िया। 

जिन लोगो ने दामिनी को मौत ,
देने में न की थी कोई कोताही। 
हाई कोर्ट में क्यों अबतक,
धीरे -धीरे चल रही सुनवाई। 

एक नाबालिग क्रूरतम वहशी ,
दरिन्दा बच निकला। 
उसे सजा मौत की ,
न मिल पाई। 

हुये कितने स्वता :स्फूर्त जन -आन्दोलन। 
दशा आज भी न देश की बदल पाई। . 
भटक रही है आत्मा "निर्भया "की ,
अभी उसे न मुक्ति मिल पाई। . 

एक ने तो ले लिया था ,
मौत को अपने आगोश में ,
अभी चार को ,
जालिम मौत नही आयी। 

कितना घना है ,कोहरा

दिनांक 17 दिसम्बर 2013 समय 7 बजे स्थान गुड़गाँव।


कितना घना है कोहरा ,
दिखती नही है ,
तस्वीर साफ -साफ।
रोशनी कितनी अक्षम है ,
दिखते नही है ,
खड़े -खड़े है पास -पास।

कभी छटेगा ,कभी हटेगा ,
कभी तो तम घटेगा ,
की गयी किसी की कोशिशो का ,
कुछ तो असर पड़ेगा।
कभी तो बुझेगी ,
कामुक नर की ज्वाला।
कभी तो छलेगा ,
नारी के सब्र का प्याला।
बचेगी अस्मिता है,
यही मेरी -तेरी आस।
मत रो यामनी ,
मत कर ,मन को उदास 

मन मोहन उर्फ़ मोनू का कहना

करें वादा वही जो कर सके "आप"
वरना जनता नही करेगी माफ़
लम्बे -चौड़े ,झूठे -सच्चे मेनोफेस्टो का
गुजर गया है वक्त।
जनता हो जागरूक ,सजग
हो रही है सख्त।
अब न चलेगा मौज -मस्ती का आलम ,
सत्ता हो रही है काटों भरा तख्त।
काश ऐसा हो ,परेशां हो जन -सेवक ,
चाहत हर पूरी हो ,
जनता हो जाये मस्त। । 

"आप के सवाल का जनता का जवाब "

दिनांक १८ दिसम्बर २०१३

"आप "के अठारह सवालों का ,
देकर जवाब।
कांग्रेस ने बढ़ा दिया "आप "पर
नैतिक दबाब।
करो अब बन्द खेल टेबिल -टेनिस का ,
मिले जो राहत जनता को।
रंग निखरेगा। "आप "की
ईमानदार कोशिश का।

छाती ठोक कर। चुनौती करोस्वीकार।
चाहे हो अल्प मत में,फिर भी बने सरकार।
सरकारें बनती है ,
बदलती है ,यही है लोकतत्र।
आने से "आप "के ,
रुकेगा ,गन -तन्त् धन -तन्त्।
जब "आप "करेगी जन -हित कार्य ,
करेगी जनता उन्हें बहुत पसन्द।
जो भी गिरायेगा,ऐसी सरकारो को ,
जनता खुद ही करेगी उन्हें नापसन्द।
होगी जीत बार -बार जनता की ,
यही तो है ,असली जनतंत्र। . 

Monday, December 16, 2013

महिला ---श्रमिक

आज दिनांक सत्तरह दिसम्बर दो हजार तेरह दिन मंगल वार प्रात :छै बजे ,स्थान गुड़गांव ,सुबहः जब नीद खुली दैनिक क्रिया के अनुसार चिड़ियों को चावल डालने घर के बाहर निकला तो देखा कि कुछ भी दिखाई नही दे रहा है। बाहर घन -घोर कोहरा छाया हुआ है। ओस की बूंदो से ज़मीन गीली हो रही थी।

इस तरह के मौसम में प्रातकालीन सैर को निकलना एक चुनौती सी लगी। हमने कुछ देर प्रतीछा की सुबह के सात बज चुके थे। अब हम निकल पड़े। हालात में बहुत बदलाव नही था। पाँच कदम की दूरी की वस्तु दिखलाई पड़ रही थी। दस कदम पर धुंधली आकृति समझ आती थी। इसके बाद घोर अधंकार कुछ भी नही दिखता। लैम्प -पोस्ट का प्रकाश। तारो की तरह टिम -टीमा रहा था। रवि कोहरे की ओट में था। उसके दर्शन नही हो रहे थे।

जगत का कार्य प्रांरभ हो चुका था। सड़को पर आते -जाते वाहनों की लाईट अधंकार को भेदने में समर्थ नही थी। ऐसे में देखा कि सड़क किनारे निर्माणाधीन भवन के बाहर एक महिला ,खुले असमान के नीचे ,कोहरे के ओट में स्न्नान कर रही है। गर्दन के नीचे ,पीठ के उपर ,बच्चो के दुग्ध पान स्थल को पेटीकोट से ढ़के। प्रात :काल की ठिठुरती शीत में कर्मठ सांवली काया की स्व्मनी मालती जल्दी -जल्दी डिब्बे से जल डाल कर अपने शरीर को साफ करने का प्रयास कर रही थी। अभी उसे बच्चो का खाना भी बनाना था। आठ बजते -बजते निर्माणधीन भवन,कार्य -स्थल पर उपस्थित होना था। देर होने पर ठेकेदार की ताने भरी बोली से दो -चार होना पड़ सकता है। यह भी हो सकता कि उसे काम पर ही न लिया जाये।

निर्माणधीन भवन के समीप ही ईटों को सजा कर दीवार बनाई। उस पर पन्नी व तिरपाल डालकर रैन बसेरा का प्रबन्ध कर लिया गया था। पास ही ईटों से ही निर्मित चूल्हा बनाया। बन गया इनका किचन। स्नान घर की व्यस्था तो नल किनारे। शौच के लिये दूर निर्जन एकान्त कि तलाश होती है। शहरो में भवनों के निर्माण में लाखों श्रमिक लगे है जिनकी दशा भी वैसी ही है.दूसरो के लिये आशियाने बनाने वाले श्रमिक खुद झुंगी -झोपडी में शीत ,ग्रीष्म ,वर्षा में ऐसे ही जीवन बसर करते है। महिला मजदूर मालती २९ वर्ष की है। दस वर्षो से अपने पति रामदयाल प्रजापति के साथ गुड़गांव में विभिन्न ठेकेदारो के अन्तर्गत गृह -निर्माण के कार्य में मजदूरी कर रही है ,एक अजीब बात है कि उन्हें उसी कार्य के लिये अपने पति से कम मजदूरी दी जाती है

वह डुमरिया गंज ,सिद्धार्थ नगर। उ ० प्र ० की मूल निवासी है। जब तेरह वर्ष की ऊम्र में उसका विवाह रामदयाल के साथ हुआ तो वह पाचवी क्लास में पढ़ रही थी। छै वर्ष तक गाँव में सास-ससुर की सेवा की। गाँव में खेती -पाती के साथ मनरेगा में मजदूरी भी करती थी। मनरेगा में जब दस दिन कम करती तो आठ दिन का पैसा बैक खाते में जमा होता। ग्राम -प्रधान की नजर भी गन्दी थी। वह कभी -कभी बुरे इरादे से हाथ पकड़ लेता। रामदयाल साल में एक बार होली में गाँव आता था। रामदयाल दस साल पहले अपने ताऊ के साथ गुड़गाँव आया था। जब गाँव में माता -पिता का देहान्त हो गया तो पट्टीदारों के सहारे अपनी थोड़ी खेती छोड़ कर पत्नी को भी साथ ले आया। उनके तीन बच्चे है। पहले लड़के की उमर दस वर्ष ,दूसरी लड़की आठ वर्ष ,तीसरे लड़के की उम्र अभी पाँच साल की है।

वह अपने बच्चो को पढ़ना चाहते है। उनका कार्य -स्थल बदलता रहता है। उसी के साथ उनका आशियाना भी बदल जाता है। बच्चो को दूर स्कूल भेज नही सकते है। इतनी आमदनी नही है। वह इसी तरह। किसी तरह जिंदगी की गाड़ी को खीचने का प्रयास करते है। यही हमारे देश के मजूदरों का भाग्य है। बड़े -बड़े बिल्डर करोड़ो में मुनाफा कमाते है। इन विश्वकर्मा के हिस्से आते है चन्द मजदूरी के सिक्के।

पुरुष श्रमिक तो दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद आराम करते है। कभी -कभी सुरापान कर अपनी थकान मिटाते है। और अपनी जोरू के ऊपर मर्दानगी दिखाते है। पर महिला श्रमिक को कड़ी मेहनत के बाद साय :काल परिवार के भोजन का प्रबंध करने में फिर श्रम करना होता है। यह दोहरी -तिहरी मेहनत।
मेहनत कश महिला श्रमिक का यही तो भाग्य है। 

बदलते आयाम

गुरु और चेले में ठन गयी।
आज -तक की एक खबर  बन गयी।
मौत से शीश राम ओला की ,बिल पर चर्चा टाल गयी।

मान लिया सरकारी बिल को अन्ना ने ,
बात मन मोहन की हर ओर जम गयी।
केजरीवाल तो पुराने स्टैण्ड पर कायम है ,
बदलते हुऐ आयाम में ,
जादू की छड़ी किरन बेदी व वी ० के ० सिंह की।
अन्ना हज़ारे पर पूरी तरह चल गयी। 

लोकपाल बनाम जोकपाल

आज की खबर है।
लोकपाल पर केजरी लगे किनारे -किनारे।
पर दिए है उन्होंने भी जवाब करारे -करारे।
इस जोकपाल से मंत्री तो क्या ,
कोई चूहा भी न जा पाएगा जेल के दवारे।
फायदा राहुल को हो राजनीति में ,
इसीलिये दिख़ रहे है यह रंगीन नज़ारे।
करेगी जाँच ,सी ० बी ० आई ० वही ,
जो खुद है सरकार की मर्जी के सहारे।
चयन भी जोकपाल का करेगी सरकारी मशीनरी ,
जनता रहेगी पहले ही की तरह एक किनारे।
कल तक अन्ना जी कहते थे जिसे जोकपाल,
आज वह भी है बस उसी सरकार के सहारे। 

शर्तो पर इकरार

"आप " की  शर्तो  की  बड़ी  अज़ाब  है  दीवार ,
भा ० जा o पा ०  व  कांग्रेस  पर  है  दोहरा  प्रहार।
कांग्रेस  भी तिल -मिला  कर, कर  उठी फुफकार ,
"
आप " नही है , जिम्मेदारी   उठाने  को तैयार।
मण्डप  सजा  है ,पर दूल्हा कर रहा  शादी  से  इनकार।
हम  तो  बिना माँगे दे ,समर्थन कर  रहे  उपकार।
रचनात्मक  सहयोग देगे हम बाहर से मेरे यार।

कयोंकि दिल्ली की जागरूक जनता से हमें है प्यार।
केजरीवाल ने कहा ,घोटालो की जाँच को हो तैयार।
जनता से पूछ ,तब हम बनायेंगे "आप "की सरकार। 

Sunday, December 15, 2013

पालतू श्वान बनाम सड़क के कुत्ते


प्रात :काल  6  बजे टहलने  के  लिये  घर  से  निकला। घन -घोर  तिमिर  फैला  हुआ था। सड़क  के प्रकाश  केंद्र  टिम -टीमा  रहे  थे। सड़क  सूनसान थी। यदा -कदा  कोई  साइकिल  सवार  पास  से  गुजर  जाता  था। खरामा -खरामा चलता हुआ आधे -घंटे  में  पार्क  पहुँचा। प्रकाश  खिलने  को प्रयास रत  था। समस्त  वातावरण  ने  कोहरे  की  चादर  लपेट  रखी  थी। हवा  में गलन  थी। गत -दिवसो में उत्तराखंड। हिमाचल ,व जम्मू -कशमीर  की  पहड़ियों  में हुए  हिमपात  का  असर यहाँ  महसूस हो रहा था। सूर्य -देव  का दूर -दूर  तक  पता नही था। लगता है आज रवि को रविवार  होने के कारण ,अपने  कार्य को प्रारम्भ  करने  की  शीघ्रता  नही  थी। चिड़ियों  का चहकना  कर्ण  प्रिय  लग रहा  था।

वैसे  तो पार्क  में श्वान  ले  जाना  प्रतिबंदित  था। जैसा कि पार्क के नियम   वाले  नोटिस बोर्ड  में लिखा  था। परन्तु पाँच -छै  की सख्या  में आवारा  कुत्ते पार्क  में टहल रहे थे। लगता है मानव  की देखा -देखी  वह  भी अपना स्वास्थ  उत्तम  बनाये  रखने  का प्रयास  कर  रहे  हो। इस  मौसम  में श्वान  जाति  अपनी संख्या  व कुल  को बढ़ाने  का अभियान  चलाते  है। एक मादा श्वान के  पीछे कई हट्टे -कट्टे  नर श्वान  दौड  लगा रहे थे। एक  दूसरे को भाॊकते -काटते  अपना  दावा मजबूत  करने की कोशिस  कर रहे थे। अन्त  में कालू नाम के कुत्ते  को सफलता मिली। चितकबरी नाम की मादा के  साथ  बासो  की झुरमुट  में चले  गये।


लालू व भूरा नाम के कुत्ते  पॉर्क  के बाहर कि ओर चले गए। बाहर फुटपाथ  पर मैडम  रोज़ी नाम की  मादा स्वान  जो अपने  मालिक के साथ  दैनिक क्रिया  से निर्वत  होने  आई  थी। उसे  देख  कर पहले  भूरा  भौका ,उसने अपने  मर्द होने  का परिचय दिया। लालू कुछ  सुघते हुये  रोजी के आगे -पीछे घूमने  लगा। रोज़ी के मालिक ने जंजीर  को अपनी ओर खीचा। उच्च -कुलीन  घराने  की कन्या  और सड़क छाप देसी  कुत्ते  का कया  मेल। सामंती  समाज के प्रतीक  रोज़ी के मालिक  को यह  नागवार  गुजरा कि एक देसी  कुत्ता  उसकी विदेशी  राजकुमारी  से मेल -जोल बढ़ाये। उन्होंने  एक स्टिक  से लालू  पर प्रहार करते हुऐ एक ओर बढ़  गए। लालू  और भूरा काफी  दूर तक भौकते रहे। एक  सीमा के बाद वे  लौट कर अपनी एरिया  में वापस आ  गए।

कुत्तों   में यह व्वयस्था  है कि कोई  किसी केछेत्र  में  अतिक्रमण  नही  करता। यदि करता है  तो  मौखिक युद्ध प्रारम्भ  हो  जाता है। -कभी  नोच -खसोट  भी  हो जाती है। कटा -कुटी  में कई  बार  घायल  भी  हो  जाते है। लौटते  समय  भूरा  ने  लालू  से  कहा कि ये  पालतू  स्वान  तो  गुलाम  है। मालिक के इशारों  पर नाचना होता  है। न  घूमने  की आजादी  न  ही  किसी  से  मिलाने की अनुमति। इनके  मालिक  ही  तय  करेंगे कि  किस  जाति के  कुलीन  घराने  के स्वान  से  इनका  मेल  हो। लालू  ने  हामी भरते हुए कहा कि यह  तो  तुम  ठीक  कह  रहे  हो। पर एक  बात  है इनके  मालिक उनकी सुविधा  का पूरा  ध्यान  रखते है। देखा नही ,हम  तुम  शीत में ठिठुरते  है। रोज़ी ने ऊनी स्वेटर  पहन  रखा है। हम  लोग सड़क के  किनारे ,दूकानो  के नीचे  दुबक  कर  रात  गुजारते है। दूसरी  ओर रोज़ी  जैसी अन्य  पालतू श्वान  गरम कमरो  में सोते  है। सुख -सुविधा  चाहे  जितनी  मिले लेकिन  हम लोगों की सी  आजादी  बिलकुल  नही  है। हम  जिसके  ऊपर  चाहते  है ,भौकते है। विचारों  की अभिवक्ति की  आज़ादी  तो है। चाहे  पेट  भूखा  रहे।

उधर  से एक बड़े -बड़े  बालों  वाला  भालू  की  तरह झूमते  हुऐ  विलियम  नाम  का स्वान  अपने  मालिक  के नौकर या कह  लो अपने रख वाले शयाम  के साथ  सड़क  के  किनारे  फुटपाथ  पर हवा -खोरी  के लिये  आया  था। लालू  और  भूरा  ने पहले  भभकी  में लेना  चाहा  पर उसकी  शेर  सी  गुराहट  सुनकर ,पूछ को अपनी  पिछली दोनों  टांगो के बीच दबा कर ,आदर -पूर्वक  कहा कि  विलयम  दादा  राम -राम। खुश  रहो ,आबाद रहो . विलियम  दादा  ने आशीर्वाद  देते  हुये  कहा कि  आज कल तुम लोग  कुछ  ज्यादा ही  दुबले हो  गए  हो। उदासी से भर  कर लालू ने कहा हा  दादा आज कल  मॅहगाई  के  कारण  लोग खाने  का सामान कम  से कम  फेकते है। यहाँ तक  गली के  किनारे वाला करीम  कसाई भी छीछड़े  कम ही फेकता है। पता नही कया  करता है। दो दिन से एक  निवाला  भी मुँह  में नहीं गया है।

यह तो सच है मॅहगाई  का असर  हमारे  मालिक पर भी पड़ा है। सौ रुपए  किलो प्याज  और महगां  गोशत। पहले  रोज ही  तर  मॉल  खाने को  मिलता था। अब  एक दिन छोड़  कर मांस  मिल  पाता है। दूध -ब्रेड  से  काम चलाना  पड़ता है। विलयम ने अफ़सोस  जाहिर  करते हुए कहा। लालू ने कहा विलयम  दादा  तुम्हीं  ठीक हो कुछ नही  तो  दूध -ब्रेड तो पा जाते हो। हमारे मोहल्ले के रामदीन  लोहार के बच्चे तो भूखे  पेट  पाठशाला  जाते है। दूध -ब्रेड तो क्या  सुखी रोटी नमक भी नसीब में नहीं  होता। यही तो नसीब  अपना -
अपना

तभी कुछ दूर से चितकबरा  दुम उची  किए आ  पहुँचा। क्या  बात है बड़े चौड़े  होकर चल रहे हो --लालू  ने  पूछा। क्या  बताए  काका हम  मोदी की रैली  में गये थे। दस रूपये  का टिकट ख़रीदा था। आजकल तो  मोदी कुछ अधिक ही भौक रहा है यानिकी जोरदार भाषण  झाड़ रहा है। कहत है कि गाँव -गाँव  से  लोहा इक्ठा  करके ,सरदार पटेल की प्रतिमा बनवायेगा और कहत है कि हमें किसान का औजार  चाहिये। अब भला  बताओ अगर  किसान  अपने औजार  दे देगा तो वह अपना काम  कैसे  करेगा। --चितकबरा  ने सूचना  देते  हुए कहा।

भूरा बोला  कुछ भी कहो। काग्रेस  के राज में  महगाई और भ्रस्टाचार  तो बहुत बढ़  गया है। अभी कुछ दिन पहले आवारा कुत्ता पकड़ने वाला दल आया था। हमका  पकड़  लिहिन। हम चुपके से उनकी मुट्ठी गर्म  किया  तो कुछ दूर ले  जाके छोड़  दिया। का बताई आदमी तो आदमी  लोग कुत्ते को भी नही छोड़ते  है। एक  केजरीवाल भाई है उन्होंने एक "आप " पार्टी  बनाई है। वह कहते है कि हम जनता का शासन लायेंगे। भ्रस्टाचार मुक्त प्रशसान होगा। वैसे  राहुल भईया मेहनत तो बहुत करत है पर मोदी के सामने जमत  नही है। मोदी शेर है ,तो राहुल ;;;;;;;;;;;;;;;

चितकबरा  ने कहा कि गुजरात में मोदी कि सत्ता है। वहाँ  भी कूकुर  समाज की दशा  शेष  देश  जैसी ही  है। हम काहे  मोदी  का समर्थन करे। उनकी तो उछल -कूद  तो बस कोई तरह प्रधान मंत्री  बन जाई। बुजुर्ग लाल किशन  आडवाडी  बेचारे अपना नम्बर आवे के इंतज़ार मा  बूढ़े हो गये। दिल्ली  अभी  दूर लागत है। अरे दिल्ली का नाम लेकर हमको शीला दीछित की याद आ गई। उनका पालतू कुत्ता हमको स्टेसन  पर मिला था। बड़ी शान थी उसकी कई सुरछा गार्ड उसके आगे -पीछे थे। आम आदमी लुटा जा रहा है। खून -खराबा होता है आतंक वादी कारनामे करते है। औरतों  की इज्ज्त  लुटी  जाती है। उनका का सरोकार  बस उनके  कुत्ते सुरछित  रहे। आम -आदमी की सुरछा  राम भरोसे।

अब तक कालू भी चितकबरी से रोमांस  फ़रमाने के बाद इस सभा में सम्म्लित  हो गया  उसने  कहा कि अभी  तुम  लोग आम -आदमी  की बात कर  रहे थे। दिल्ली  विधान -सभा के चुनाव में किसी दल को बहुमत नही मिला  है। भा ० जा ० पा ० ने सरकार बनाने से मना कर दिया है। उप राजयपाल  ने "आप "पार्टी को सरकार बनाने को कहा है। कॉग्रेस ने बिना मागे अपना समर्थन  आप पार्टी को दे दिया। केजरीवाल ने कहा पहले हमारी १८ मुद्दे पर अपजिन्दाबाद नी सहमति जाहिर करो। हम  जनता से पूछ कर सरकार  बनायेगे। देखो क्या होता है। अगर समय से सरकार नही बनेंगी तो दुबारा चुनाव होंगे। अरबों रुपया फिर खर्च होगा। कौन होगा  ज़िम्मेदार।

 अब हमलोग भी एक अंतर -राष्टीय कुत्ता पार्टी  बनायगे ---जोश में आते हुऐ कालू ने  कहा। समस्त देशो के कुत्तो  को एकजुट करेगे। दुनिया के कुत्तो एक हो -एक हो  का नारा बुलंद किया। सारे कुत्ते भौकने  लगे। हम अपने अधिकारो  के लिये संघर्ष  करेंगे। अरे यह कहा हो सकता है --निराश होते हुये भूरे ने कहा। कयो  नही हो सकता है। लोक तन्त्र  में सबको अधिकार है। जब स्वामी रामदेव "स्वाभिमान पार्टी बना सकते है। महा -भोगी
नारायण साई जब "अभुदय पार्टी बना सकते है चाहे जेल में हो तब हम क्यों नही बनासकते  है। ---कालू  ने ललकारते हुये कहा हमारा स्वान संघ --जिन्दाबाद ---------जिन्दाबाद। 

Saturday, December 14, 2013

कूड़े में जिन्दगी खोजता बचपन




प्राची  दिशा में  कंकरीट  के जगलों  के  पीछे  से  निकलती  नारंगी ,सुनहरी  किरणे ,भुंवन -भासकर  के आगमन  की घोषणा  कर  रही  थी। वातावरण  में  हल्की -हल्की धुंध  शीत का अहसास करा रही थी। भो -भो  की आवाज ने  हमारा ध्यान  आकर्षित  किया। देखा  कि एक  कूड़े  के ढेर के पास ,जहाँ  सूकर  लोट रहे  थे। 

एक बालक कुछ  खोज  रहा है। उसके  आस -पास  कुत्तो का झुण्ड उसकी ओर देख कर भूक रहा है। वह  निरीह  बालक अपने  झोली  को हथियार  बनाये ,चारो ओर घुमा कर  कुत्तो से मोर्चा ले रहा था। उसका भाई  तेजी से बोतल बटोर रहा था। यह कुत्ते भी कितने अजीब है। क्या यह बालक इन्हें  चोर -उचक्का  लग रहा था। ये आवारा  कुत्ते भी उसे इन्सान न  मान अपना  दुश्मन  समझ  रहे है। 

एक  लकड़ी  का लट्ठ उठा कर हम जो उनकी ओर लपके  तो कुत्ते दूर तक भोकते  हुए चले गए। हमने उनके करीब आ कर कहा कि तुम  कया  खोजते हो। उन्होने  कहा  कुछ बोतले ,कुछ लोहे का  सामान। हमने पुन :पूछा कि उसका कया  करोगे। उसने धीरे से कहा कि कबाड़ी वालो को बेच कर  कुछ पैसे  मिलेगें। उनसे खाने का सामान खरीद लूंगा। 

यह भी  जिन्दगी है ,एक इन्सान के बच्चे की। स्कूल  जाने के दिनों में वह कूड़े में जिन्दगी  खोजता है। क्या हुआ सर्व -शिच्छा  अभियान का। कहाँ  गया शिच्छा  प्राप्त  करने का मौलिक अधिकार। न जाने  कितने नौनिहाल शिच्छा प्राप्त  करने से वचिंत है। इस  देश की पैसठ  वरसों  की आजादी के बाद हम कैसी प्रगति कर रहें है। 

हमने पूछा कि कया  नाम है तुम्हरा। एक  बोला हमारा नाम है रहमान। दूसरा बोला हमारा नाम है  सुल्तान। 
हम दोनों भाई -भाई  है। हमने पूछा कि घर में और कौन -कौन है। अम्मी है। अब्बा है। नफ़ीसा ,रजिया। नरगिस  तीन  बहने है। तुम्हारे अब्बा क्या करते है। उन्होंने कहा कि वह कुछ नही करते है। वह  बीमार है। अम्मी पास के घरों में  साफ़ -सफ़ाई  का काम करती है। हम पाँच  भाई -बहन  कूड़ा  बीनते है। हमनें  पूछा कि  कुछ सुबह से खाया है कि नही। हाँ  कल  रात की बची  रोटी  पानी से भिगो कर खाई है। हमने पूछा भूख लगी है। शर्माते हुये  उन्होंने  हा  कहा। हम उन्हें लेकर चाय की दुकान पर आए। ब्रेड व चाय  पिला  कर उन्हें   
विदा किया।
दूसरी ओर  से एक बस आकर रुकी।  सूट व टाई से सजे - धजे बच्चे। किसी बड़े अग्रेजी स्कूल के विद्यार्थी बैठे थे। मनं फिर सोचने लगा कि यह कैसी विषमता है। मानव -मानव में कितना अन्तर है। एक यह बचपन है ,जो सज -धज कर सर्व साधन सुलभ , चैन की बंसी बजाता है। जो आगे चल कर,पड़ लिख कर ,प्रशासन का कार्यभार सम्भालेगा। एक वो बचपन है जो कूड़े के ढेर में जिंदगी खोजता है। जो आगे चल कर मजदूर बनेगा शोचित होगा कुपोशित होगा।





तस्वीर कुछ बोलती है




बेक़रारी  से  है ,इन्तजार  उसे  किसीका।
जो  आ  सके  समय  से ,ये  जाम है उसीका
है ,मेज  खाली -खाली ,खाली  है कुर्सियाँ  भी।
उन्हे  है बेसब्री  से  इन्तजार  बस  उसी का।
ढ़ल  रही है शाम ,उतरती है निशा  भी।
चढ़ते  हुए , येवन  की भटकी  हुई दिशा  सी।
जुल्फों  को  कस  के  बाधा ,सीने  को  कुछ  उभरा।
है ,हाथ  क़मर  में ,है  दिलकश  ये है नजारा। 

पैतरे बाजी की राजनीति

इतने  आतुर  है ,काग्रेसी  कि  बने "आप " की  सरकार  ,
बिना मांगे  ही ,सौप  दिया  समर्थन  पत्र,
नजीब जंग  को  जिसकी न   थी "
आप " ने कोई  दरक़ार ।
कैसे  निभाएगे,जनता  से  किया  वादा "आप "के लोग ,
इसका है ,उन्हे  बड़ी बेसब्री   से इन्तज़ार।
पाले  में  डाल  दी है ,गेंद  "आप "के दवार ,
सोची -समझी  चाल  है ,न  जनता से ,न "आप "से है प्यार।
विचार -विमर्ष  कर  के "आप " के लोग।,


चि
त  जवाब  देने  को है  "आप "भी  तैयार।
प्रत्य छ  जन तंत्र  की  ओर  बढ  रही है आप  की "आप "
अप्रत्य् छ  लोक तंत्र  पर  लगे गा  धीरे   सा  श्राप।
बिना  शर्त  समर्थन  पर ,लगा दी   है  "आप "ने शर्त ,
खुल जायेगी भा ० जा ०पा ०  वा कांग्रेस  की अंदरूनी  पर्त
मुद्दे  के वा  कुछ सवालो  के  आधार  पर  हम  बनायगे
सरकार।
"आप " और  हम  जायगे ,मुख्य  सवालो  पर ,
जनता  के  द्वार  बार -बार। 

Friday, December 13, 2013

बदलती राजनीति

नज़ीब ज़ंग ने पुछा पहले भाजपा से,
क्या आप बनाएंगे दिल्ली की सरकार। 
हर्षवर्धन ने कहा सकुचाते हुए,
चाहते तो है , परन्तु कुछ छोटा है हमारा परिवार।  
जोड़ -तोड़ करना हमारी फितरत नहीं,
जायेगे पुनः समर में, पूर्ण बहुमत का है इंतज़ार।  
फिर जंग ने पुछा आप से क्या आप,
बनायेगे दिल्ली कि सरकार 
कहा विश्वास ने पूर्ण विश्वास के साथ,
सभी विकल्पों पर कर रहे है पूर्ण विचार 
हमें नहीं है भाजपा या कांग्रेस के समर्थन कि दरकार। 
पड़े ना बोझ दोबारा हमारी जनता पर 
हाँ, हम बना सकते है अल्प मत कि सरकार।  

Monday, December 9, 2013

आज की राजनीति

हाथ बेचैन है, समर्थन देने को आप
हार कर समझ आया की जनता ही है बाप
आकड़ा छत्तीस का है , भाजपा ना आप के पास
सत्ता किसी कि न होगी जनता भई उदास
महंगाई के आगे ना काम आया मेट्रो न चमचमाती सड़के ना विकास के अंडरपास
अपने दल को छोड़ कर आये थे जो आप के पास
वोटर है सबसे बड़ा जागरूक उसने ना डाली घास
"आप" सत्ता में आये चाहतेहै शरद पवार
मदहस्त करने को किरण बेदी भी है तैयार
ऐसी सत्ता है मृगमरीजका कि तरह
दूर ही रहना आप के आम आदमी हैं मेरे यार


Sunday, November 10, 2013

हम है राही फुटपाथ के

गुडगाँव एक औद्योगिक नगर है।  यहाँ के रहने वाले निवासियो के पास अपने अपने वाहन है।  मोटे मोटे अनुमान के अनुसार ४५ % नागरिकों के पास , कार -जीप , मोटरसाइकिल, स्कूटर , साइकिल अदि है।  चौड़ी -चौड़ी सड़कको पर दिन रात तेज गति से वाहन चलते रहते है।  ऐसे में ५५ % जनता के पास चलने के लिए फुटपाथ  ही बचता है।
चित्र  १ 

चित्र १ 
चित्र २ 
चिर २ 
चित्रों  के माध्यम से हमने यह दिखने कि कोशिश की है कि गुडगाव में फुटपाथों की दशा कितनी दयनिय है।  चित्र १ में दिखिये  वज़ीराबाद चौराहे के पास कूड़ादान रखा है।  उसके साथ ही एक पान कि गुमटी फुट्पाथ पर आबाद है।  पैदल चलने वाले को मजबूरन सड़क पर उतरना पड़ेगा।  चित्र २ में देखिये कि एक खम्बा फुट्पाथ पर लेटा आराम फरमा रहा है , इसे शायद बिजली विभाग या गैस पाइप लाइन बिछाने वाले लोगों ने को यहाँ रखा होगा।  अँधेरे में पैदल चलने वाला इससे टकरा कर घायल होगा।  चित्र ३ में देखिये फुट्पाथ पर बजरी-मोरंग स्टोर किया गया है , पता नहीं किस विभाग कि मेहरबानी है।  चित्र ४ में देखिये कि होंग कॉंग मॉल के समीप मुख्य सड़क के फुटपाथ पर कूड़ादान भी किसी विभाग कि कृपा है।  चित्र ५ में देखिये, ड्रेनेज के लिए फूटपाथ को खोदा गया, सिस्टम को बनाया गया फिर काफी समय से खुला छोढ़ दिया गया।  रात्र  में कभी भी दुर्घटना सम्भावित है।

चित्र ३ 
चित्र ४ 
चित्र ५ 
चित्र ५ 
हम इस आलेख के माध्यम से हुड़ा प्रसाशन से निवेदन करना चाहते है कि जगह जगह फुटपाथ  पर नाजायज़ कब्ज़ा जमाये लोगो को अन्य स्थान पर विस्थापित करे।  ताकि हम जैसे फुटपाथ के राही को सड़क पर तेज भागती कारो से बचने के लिए ठीक थाक फुट्पाथ उपलब्ध  हो सके।  आये दिन लोग दुर्घटना का शिकार हो जीवन से हाथ धो बैठते है।  कुछ लोग तो फुट्पाथ को पार्किंग कि तरह इस्तेमाल करते है।  कुछ तो अपनी दूकाने सजा कर पैदल चलने वोलो का चलना दुर्भर कर देते है।  इन सबको रोकना प्रशासन कि ज़िम्मेवारी तो है।  कम से कम इन लोगो को भी सोचना चाहिये  कि वे ऐसा कोई अवरोध उतपन्न  न करें।

हम, सूश्री सुप्रभा दहिया , हुडा प्रशासक का ध्यान विशेष रूप से दिलाना चाहते है।  दैनिक जागरण दिल्ली के पृठ  नंबर ५ (दिनांक ०९-११-१३) में एक समाचार छापा है "हाई कोर्ट ने कहा , सड़को पर बने साइकिल ट्रैक" हरियाणा व पंजाब केहाईकोर्ट  जस्टिस, राजीव भल्ला ने सड़क सुरक्षा के मामले की  सुनवाई करते हुए उक्त आदेश दिया।  फुटपाथों पर नागरिक , सुविधा और सुरक्षा के साथ चल सके ऐसी व्यस्था होनी चाहिए।
















Tuesday, November 5, 2013

यह भी दुकाने है। ....... भाग -२

अमूल की छाछ का क्या दाम है गुडगाँव में ????मैंने दुकानदार से पूछा ।  ५०० ग्राम के पैकेट का दाम १० रुपया है दुकानदार ने जवाब दिया । हमनें कहा , अरे भाई पैकट पर तो ९.५० पैसा अंकित है । हाँ है तो , पर १० रुपया में हे मिलता है । हमने कहा , यह तो बात ठीक नहीं है । यह माना कि ५० पैसे का सिक्का प्राय: चलन से बाहर हो गया है परन्तु जब ग्राहक दो या चार पैकेट खरीदता है तो क्यों ना बाकी रेजगारी, जो १ या २ रुपया होता है । उसे दुकानदार वापस क्यों नहीं करता । यह विचार मेरे मन में चलता रहा । घर पर जब चर्चा की तो लड़के ने कहा कि आप भी पापा छोटी छोटी बातों को लेकर क्या पीछे पड़ जाते है । हमने कहा बात एक या दो रूपये के नहीं है बात सिद्धांत कि  है। छाछ के रैपर पर छपे टोल फ्री नंबर १८००२५८३३३३ पर वार्ता कि तो ज्ञात हुआ कि अमूल छाछ का विक्रय मूल्य मात्र ९.५० पैसे हे। हमने वजीराबाद की दूसरी दुकान से अमूल छाछ खरीदा तो उसने दो पैकेट का दाम १९ रुपया लिया ।
अब हम पुनः "आंटी जरनल स्टोर " के मालिक श्री कौशल किशोर कुकरेजा के समक्ष उपस्थित हुए । उनसे जब मैंने बातया कि कस्टमर केअर व वजीराबाद कि दुकान की बात बताई और कहा की आप गत एक माह से प्रतिदिन एक रुपया अधिक़ ले रहे है । इसपर उन्होंने झेपते हुए बताया कि कुछ दिनों के लिए कंपनी ने दाम बढ़ा दिये थे । अब तो बात पूरी तरह साफ़ हो गयी थी कि श्री कुकरेजा सबसे अधिक पैसे ले रहे थे । हमारे जैसे ना जाने कितने लोग इनके शिकार हुऐ होंगें। जागो ग्राहक जागो का विज्ञापन अखबारो में टेलीविज़न पर प्रसारित होते रहतें है। इनसे हमें सीख लेनी चाहिये ।
वैसे कुकरेजा साहब काफी सुलझे हुए, शिक्षित, लग भग साठ वर्षीय नागरिक है। इनके पिता १९४८ में भारत- पाक बटवारे के समय दिल्ली आये थे । किसी तरीके से रोजगार करके अपने परिवार का पालन पोषण किया।
कौशल किशोर जी गुडगाँव में एक मकान कि बेसमेंट में जनरल स्टोर चलते है । वह खुद प्रातः ८ बजे सहपत्नीक आकर स्टोर खोलते है । रात्रि ८ बजे तक दोनों कड़ी मेहनत करते है। दूध , ब्रेड ,बटर तथा अन्य घरेलू वस्तुए इनके स्टोर में मिलती हैं । तीन लड़के नौकर रखे है। कॉलोनी के सभ्रांत नागरिक इनके ग्राहक हैं। मोबाइल से आर्डर बुक करके "होम डिलीवरी सेवा  "  के अंतर गत सामान घर पर भिजवा देते है । जिसका वो कुछ पैसा अलग से चार्ज करते है।
जब हमने उनसे इंटरव्यू व छायाचित्र देने को कहा तो उन्होंने मन कर दिया। कहा कि वह प्रचार नहीं चाहते है। दुनिया में कुछ अच्छे और कुछ बुरे लोग होते है । वह किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते है । वैसे बात चीत के  बीच में उन्होंने बाताया कि समय बिताने के लिए ये स्टोर प्रारंभ किया था। परन्तु अब दिन भर कि कसरत से उबगये है । स्टोर बंद करना चाहतेहै । लेकिन लगभग़ ३०००० रूपये मासिक के आये भी छोड़ी नहीं जा सकती है ।
कहने का अर्थ ये है कि औद्योगिक नगरो में बच्चा हो या बूढ़ा, जयादा पढ़ा हो या अंगूंठा -छाप, पुरुष हो या महिला सबको काम है। जो करना चाहते है ।.…………………………………………




मौत से दो पल दूर

दिनाक २ नवंबर २०१३ , रोज कि तरह प्रातः ६ बजे हम घर से निकले । शीत का प्रकोप प्रारम्भ हो चुका था । लोग जगह -जगह पुराने कागजो-लकडिओं से अलाव जला कर ठण्ड से बचने का प्रयास कर रहे थे । हम खरामा -खरामा , कुहासे के साय में ,कदम ब कदम बड़ाय चले जा रहे थे । अभी प्रकाश ठीक से प्रकाशित नहीं हुआ था । आज छोटी -दीवाली थी  शायद भुवनभास्कर भी अवकाश के मूड में है। आकाश पर हलके -हलके बादल मंडरा रहे थे । रवि के दर्शन नहीं हो पा रहे थे ।
जब मैं वजीराबाद चौराहे पर पहुचा तो देखा कि दो कारो में भयंकर टक्कर हुई । दो लोग घटना स्थल पर मृत प्राय: हो गए । हम केवल घटना स्थल से दो पल कि दूरी पर ही थे । दोनों वाहन टक्कर के बाद फुटपाथ पर चढ़ गये  थे । एक कार तो फुटपाथ पार कर, लोहे की रेलिंग तोड़ कर, पार्क  के लिये छोड़े गए स्थल तक जा पहुची थी और दूसरी कार जो टैक्सी थी वह फुट्पाथ पैर थी। जो लोग दुर्घटना से प्रभावित हुए, वे बेचारे राहगीर कही जाने के लिए फुटपाथ पर खडे थे । यदि हम दो पल पहेले घटना स्थल पर आजाते तो पता नहीं कहाँ होते----------------






सम्भवता कार चालक ,शुक्रवार की देर रात्रि तक चलने वाली पार्टी से आ रहे थे क्योंकि कार चालक जिसकी टांग में चोट लगी थी उसके मुह से मदयपन की गंध आ रहे थी। किसी तरह से ऑटो द्वारा अस्प्ताल भेजा  गया । कुछ लोगों ने बताया कि इस तरह  की दुर्घटनाये शनिवार को प्रातः २ बजे से ७ बजे के मध्य होती है ।
आज भी शनिवार ही था । कारण स्पस्ट है कि शुक्रवार के पार्टी में क्या पान किया जाता होगा । अखबारो व टेलीविज़न में इतना प्रचार होता है कि पीकर वाहन ना चलायें। पुलिस जाँच भी करती है और चालान भी
करती है पर लोग है कि मानते नही। …………………………………


    

Monday, November 4, 2013

अधूरे सपने अधूरी ज़िन्दगी

मनोरम ने कभी सपने में भी नही सोचा था कि उसकी जिन्दगी में  ये वक्त भी आयेगा । अपने छोटे -छोटे बच्चो को छोड़ कर, वह रगीन सपनो  के संसार  में खो जायेगी । पुरानी यादों को कुरेदते हुए मनोरमा भूत काल  में प्रवेश कर गयी।  छाया दीदी क्या बताएं , हमारी मात मारी गयी थी । हम पाण्डेय जी चिकिचुपड़ी बातों में आये गये । बचपन मा हमार लगन हुए गवा रहे, उस वकत हमरी उमर १२-१३ वर्ष के हुई । हमार मायका गोंडा सहर में रहा । हम पांचवी दरजा तक पढ़ाई कीन रहा, हमार ससुराल देहात में रहा हुआं खेती हुवत रहा । हमका देहात मा  तनको नीक ना लागत रहा । हम सोचा करीत रहे कि शहर मा हमरा आदमी रहे । धीरे -धीरे हमरा परिवार बढ़े लगा । २२ बरस के उमर तक हमरे दो लरिका वा एक बिटियां हो गए । हमारे सास ससुर बूढ़े रहे यह खातिर खेत पात का काम हमरे मनई देखेत रहे । हम चाहित रहे के खेत पात बेच के सब लोग सहर मा रहे । हमरे सपना मा हर बखत सहर के सिनेमा ,बाजार , बिजली ,पानी, सड़क आराम का सामान देखाये देत राहे । जबकि गाव के पनाला बह्त गालियाँ, बिजली गाव में रहे नहीं तो टी०वी० भी नहीं रहे । मुह अँधेरे उठ जाओ और दिसा मैदान से होके घर के चूल्हा -चौका मा जुट जाओ। कौनो होटल वहाँ कहाँ धरा । हमारा शहर मा रहे का सपना अधूरा था । हमारा आदमी दिन भर खेतन मा हाड- तोड़ मेहनत करत रहे । थक जात रहे । शाम का आयके खाना खाये के जल्दी सो जात रहे, कहे कि जल्दी सुबह उठ के भैंसों का दुध शहर पहुचाना का रहे । हम वोसे बातें  करेका तरसा करी ।
हमरे घर के बगल मा एक बाजपयी जी रहत रहे । उनकी बिटिया सीमा गाव  के स्कूल मा पढ़ावत रहे । सीमा दीदी हमसे ६ बरस बड़ी रहे । उनका विवाह बनारस में रहे वाले पाण्डेय जी के साथ भवा  रहे । स्कूल के नौकरी के वजह से सीमा दीदी अपने ससुराल नहीं गयी । पाण्डेय जी हफ्ता -हफ्ता मा आवत रहे । हम उनके घरे आवत -जात रहे । पड़ोस का रिस्ता से पाण्डेय जी जीजा लागत रहे । आपस में हसी -मजाक चलत रहे । पाण्डेय  जी हमका शहर की बातों से लुभावत रहे । वह हमार कमजोरी जान लिहिन । एक बार उनहोने हमसे कहा कि चलो मनोरमां शहर मा तुमका सिनेमा देखाये । हम कहा कि हमरे घर वाले कैसे जाएँ देहे । जीजा कहिन हम घरे बात कर लेबे ।
हम उनके साथ सिनिमा देखे शहर गये रहन । जब  शाम के गाव लौटे खातिर हम बस अड्डा आये तो पता चला कि बसन की हड़ताल हुए गयी है । कहूँ मारपीट  भई रहे । करफू लाग गवा । अब तो हम बड़ी साँसत में सोचत रहे कि अब का करी । पाण्डेय जीजा कहिन कि अब तो यहीं रूकिये का पड़ी । वह हमका एक होटल मा लिवा ले गए । खाना-वाना खाये के बाद कोका -कोला पिये लागे । हमका  भी एक गिलास मा पिये का दिहिन। हम  कहा के हमका नीक नहीं लागत हम नही पीयब । वो हमको बच्चों के कसम दिलाये लगे । हम मज़बूरी  मा मन मारी के कोका-कोला पिये का परा । कुछ देर बाद हमरी आखें बंद होने लगी। कुछ चक्कर सा आवे लगा । इके बाद हमका ऐसा लगा कि कोई हमरे पास सट के बैठा है। धीर-धीरे कोई हाँथ सहलाता है । फिर हमका होश नहीं रहा ।
सुबह हम जब जगे तो हमार सर भरी-भरी लागत रहे और हमरे कपडा पलंग के नीचे पड़े रहे । हमरी आबरू पर डांका पडिगा रहे । हम रोवत जाएत और उनका बुरा -भला कहत जायेत रहे । जीजा हमका समझावत रहे कि वो हमार ज़िंदगी भर साथ निभावे का तैयार है । हमका आपने साथ ही शहर में रखे खातिर कसम खान लगे । उनका तबादला बनारस से लखनऊ हुए गवा रहे । अब जल्दी-जल्दी गाव नहीं आ पावत रहे । हम कहा कि सीमा दीदी का का होई । अरे सीमा तोह हमारे साथ लखनऊ जा नहीं पायेगीं, उनकी नौकरी गाव में है और वो अपनी नौकरी छोड़ का तैयार नहीं है --जीजा ने समझते हुए कहा ।
जब दूसरे दिन हम गाव लौटे तो घर मैं बड़ा हो हल्ला मचा। जीजा तो हमका बस मैं बैठा के बनारस चले गए, हमका अकेले हि गाव आना पड़ा। हमरे सास ससुर चिल्लावत रहे ------अरी कल मुही सारी रात कहाँ रही ।
फिर हमरी तो बहुत पिटाई हुई। हमरा आदमी जैसे पागल हुए गवा । बैल हाके वाले हंटर से मारत -मारत अधमरा कर दिहिस । कहत जात हरामजादी कहाँ मुह काला किहो । बाल बच्चा भी डराये के दुपक गए अब तो गाव वाले हम पर हसत रहे बोली -ठोली बोलत रहे । रोज़ कि कीच -कीच से परेशान हुए के हम घर छोड़ के पाण्डेय जी के पास लखनऊ आये गए। जीजा रेलवे में काम करत रहे ,उन्हे सरकारी घर मिला रहे। हम लोग २० बरस तक साथ -साथ रहत रहे। उनके खाना -पीना ,घर का काम काज और पत्नी धरम निभावत रहे ।
अब जीजा रिटायर हुए गए है । अब वो चाहत है कि वो घरे लौट जाये, सीमा दीदी भी अपने ससुराल चली गयी। हम तो अपने घर लौट नहीं सकित है । बाल -बच्चा भी बड़े -बड़े हुए  गये है । सब अपने बाप के पास राहत है । हमरी सूरत भी नहीं देखना चाहतें हैं । हमसे नफरत करत हैं। "हमरी ज़िन्दगी अधूरी है। सपने भी अधूरे हैं" ------कहकर मनोरमा रोने लगी ।
छाया ने कहा , ये पुरुष भवरें है , जब तक फूल मैं जीवन है ,रस है रसपान करते है फिर उड़ जाते है, दूसरे फूल के पास……………तुम भोली -भली ग्रामीण महिला ,तुमने अपनी आगे के ज़िन्दगी का कोई प्रबंध नहीं किया। तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है। पाण्डेय जी  ने , ना तो सीमा से तलाक लिया और ना ही तुमसे विवाह किया है । इतने वर्षो में तुमने भी कोई जमा -पूँजी नहीं बनाई । खाली -खाली जेब कैसे आगे का निर्वाह होगा। कभी भविष्य का सोचा है ।
यही तो बात है छाया दीदी, हम का जानत रहे कि ज़िन्दगी के इस मोड़ पर , हमका मझधार मा छोड़े का सोचें गे । अब तो हम कुछ कर नहीं सकित है । बस आप लोगन के सहारे ज़िन्दगी गुजार देब ।
पुरुष सत्तातमक व्य्वस्था में आज भी नारी के दशा बहुत अच्छी नहीं है।

सीमा हो या मनोरम दोनों ठगी गयी। एक पुरुष द्वारा-----------------------------------------

Saturday, November 2, 2013

लज्जा का दर्द

भड -भड , तड़ाक -  तड़ाक  , छनं - छनं , खड़बड़ - खड़बड़  करता हुआ तेज शोर मेरे कानो में तेज कटार  कि तरह घुस रहा था।  मैंने कहा , अरे  लज्जा रसोई घर में तूफ़ान आ गया है या भूकम्प का प्रकोप है।  बर्तनो को क्यों इतनी  ज़ोर- ज़ोर से पटक रही हो। अरे कहा अंकलजी , हम तो बर्तन नीचे रख के धो रहे है , लज्जा ने मुस्कुराते हुए कहा।  हम तो जैसे रोज़ बर्तन चौक करते है , आज भी वैसे ही कर रहे है।  मेरी पत्नी ने कहा अरे लज्जा रानी अब ज़रा  धीरे से बर्तन रखा करो क्यों कि तुम्हारे अंकल ने कानो में ४२ हज़ार कि नयी  सुनने कि मशीन लगाई है।  अब  उन्हें हर आवाज़ तेज सुनाई देती है।  पंखा चलने कि आवाज़ , यहाँ तक की तेज हवा चलने कि सरसराहट भी सुनाई देती है। 

दुबली - पतली या कह  लो, छरहरी सावली काया में उल्लास से चमकती हुई आँखें , हर समय  हस्ती खिलखिलाती खुश मिजाज़ , दोनों हाथो को तेजी से आगे पीछे फेकते , तेज चल में चलती हमारी काम वाली लज्जा जिसे हम लज्जा मेल के नाम से पुकारते है। लज्जा ने मुस्कुराते हुए कहा कि अंकलजी यदि हम तेजी से काम नहीं करेंगे तो ७-८ घरों में कैसे काम निपटेगा।  यह सुन कर हमारे में कई सवाल उमरने लगे।  हमने कहा कि  लज्जा , तुम अपनी दिनचर्या बताओ।  वह  कुछ संकुचाती , शर्माती  हुए बोली अंकलजी हम सुबह  ५ बजे उठ जाइत  है घर साफ़ सूफ करके , घरवालो के लिए चाय नाश्ता खाना  बनाईत  है।  करीब ७ बजत-  बजत घरे से निकर जाइत है।  ७ घरन मा चौक बर्तन साफ़ सफाई पौंछा करत करत दोपहर ३ बज जात है।  घर आईके थोडा  बहुत खाना खइके आराम करित  है।  यही समय हम टीवी देखित है। हमका सी०  आई०  डी०  सीरीयल  बहुत नीक लगत है।  उमा दया तो हमका बहुते बहादुर लागत  है।  यह कोई चार बजत - बजत हम फिर घर से निकर परित है।  सब घरन मा बरतन धोवत - धावत ८ बजे तलक घरे लौट आईत  है।  फिर घरे का काम धंधा तो हमें ही करे का परत है।  इ सब करत- करत खात- पियत दस बज जात है।  ईके बाद हम सी०  आई०  डी-०  सीरियल ज़रूर देखित  है।  फिर थक थुक के सो जाइत  है फिर से सुबेरे उठे खातिर।

अच्छा यह बताओ इतने घरो में काम करती हो , तुम्हे कितना  पैसा मिल जाता है।  कुछ ठंडी आह के साथ कहती है कि करीब ४ हज़ार कमा  लेइत है।  हमने कुछ सोच  के आगे पूछा  , कि तुम्हारे परिवार में  कितने लोग है।  इतनी भीषड़ महंगाई में घर का खर्च चलाना तो बहुत ही कठिन है।  अंकिल जी , हमरे घरे मा हमरी  सास है , आदमी है , और ३ लरिका है।  सास के नाम बी०  पी ०  एल ०  कार्ड है उमा चावल , गेहू कबहु कबहु चीनी मिल जात  है।  कौनी तरीके  से बाल - बच्चन  का पाल  रहे है।  बीमारी - अजारी व त्योहार  आदि माँ जहाँ -जहाँ  काम करित  है कुछ उधर पाजाइत  है।  ऐसे ही ज़िन्दगी कि गाड़ी  खैचित  है। वह  कुछ उदास हो जाती है , हमने फिर धीरे से पुछा , कि तुम्हारा पति भी तो कुछ कमाता होगा।  बड़े  ही सर्द स्वास लेते हुए बोली  यही तो दुःख है हमका वो कभी -कभी  काम करत है।  जी लगा  कर कभी काम  नहीं करत है।  आकारु मनाई है जहा काम करत है , अगर कुछ कोई कह  दिए तो काम छोड  घर बैठ जात है।  हम कुछ कह देई तो हमका  हरकाए देत  है।  मार- पीट  करे का तैयार हो जात है।

अतीत में खोते हुए आगे बताती है कि हमर बियाओ १२ वर्ष कि उम्र मा होई गवा रहे।  २० बरस होई गए है , हमरा मायका  डालीगंज में है।  जब बियाह के बाद हम इंदिरा नगर ससुराल आये ।  हमरे ससुर तांगा  चलावत रहे।  अच्छी कमाई हुई जावत रहे।  उनके मरे के बाद हमका घरन - घरन चौक बर्तन का काम करेका परा।  कहे कि हमरे आदमी का काम करे मा शुरू से ही मन नहीं लगत रहे।  कुछ दिन तक तो हम मरे सरम के कहु जात नहीं रहे , फिर धीरे धीरे बाल बच्चा होते  गए । खर्च बढत गवा हमरे घर भी काम वाले बढत गए।  काफी उदास होकर वो बोली , इतना सब करत है  पर कौनी बात पर उई गुस्साए जात है तो, हम अगर कुछ कह देई  तो मारे कि खातिर दौरत है और कहत जात है हम तुमरी  कमाई खात  है पर तुमरी  धौस हम  नहीं सह सकित है। 

"नारी  जीवन तेरी येही कहानी।  आँचल में है दूध , और आँखों में पानी " महिला सशक्तीकरण  , ८ मार्च विश्व महिला दिवस कब सार्थक होंगे।  करोड़ो  महिलाओं का शोषण कब तक चलेगा....……………………… ?

Friday, November 1, 2013

यह भी दुकाने है

रोजगार कि तलाश में आदिकाल  से मानव अपने मुख्या स्थल को छोड़कर कर दुसरे शेहरो व देशो में पलायन करता आ रहा है। जब गावो में कृषि का कार्य नहीं होता है या परिवार के बढ़ने पर जोत कम हो जाती है, या स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध नहीं होता है  तो ग्रामीण जन शहरो की  ओर रूख करते है।  पूर्व में विश्व के अनेक देशो में जैसे मरौशउस , फिजी, गुयाना आदि देशो में गिरमिटिया मज़दूर के रूप में बिहार, मध्य प्रदेश,पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग बड़ी संख्या में गए आज भी खाड़ी देशो में काफी संख्या में लोग रोज़गार कि तलाश में जाते है।
 ऐसे ही गुडगाँव में  भी काफी संख्या में मज़दूर, छोटे रोजगारी ,रोज़ी रोटी कि खोज में आये है।  आपका परिचय हम तेरह वर्ष के किशोर ,राज किशोर पुत्र  उत्तम से करते है।
 इन्होने सड़क के किनारे चार डंडे गढ़ कर ऊपर पन्नी कि छत बनाई।  ज़मीन पर चार लोहे के रोड गाड़ कर प्लाई का पटरा जमा दिया।  पांच किलो का गैस सिलिंडर रख कर चाय बनाने का काम प्रारम्भ कर दिए।  साथ ही कुछ सस्ते किस्म के बिस्कुट नमकीन पान  मसला व सस्ती बीड़ी ,सिगरेट आदि सजा ली।  लो तैयार  हो गयी दूकान।  इनके  ग्राहक है आस  पास रोजंदारी में घर बनाने का काम करने वाले मज़दूर।  जनाब आठवी पास है, नवी क्लास में फ़ेल हो गए।  पिताजी ने फटकार लगाई तो पन्ना, मध्य प्रदेश से भाग कर अपने दीदी जीजा के पास आ गए।  सुबह छै बजे दूकान खोल कर साय छै  बजे तक कार्य करते है।  विश्वास तो नहीं होता पर उनके कहने के अनुसार रोज़ कि बिक्री लगभग एक हज़ार रुपये कि हो जाती है।  इसमें लाभ लगभग दो तीन सो रुपये हो जाता है।
 खाना खुद पकाते है क्योंकि इनके जीजा व दीदी मकान बनाने कि मजदूरी करते है।  पास ही ईंटो  कि चार दीवार ऊपर टीन का छप्पर यही  इनका निवास है।  यहाँ एक तरफ तो  गगन चुम्बी आट्टालिका ,महंगे विला हैं।  दूसरी तरफ कमर झुका कर घुसने को मज़बूर इन्सान ।  इनमें भी आदमी रहते है।  यह अच्छी बात है कि महाशय का मन पढ़ाई से पूरी तरह उचटा नहीं है।  फिरघर जाकर पढ़ाना चाहते है।  हमने पुछा आगे क्या करोगे तो बताया कि हम बैठ कर  काम करने वाला कार्य चाहते है।  हमने कहा कि इतनी कम पढ़ाई में कैसे ऐसी नौकरी मिलेगी।  बहुत  लोग बेरोज़गार घूम रहे है।  उसने मेरा ज्ञानवर्धन करते हुए बताया कि बड़े बड़े स्टोर में आर्डर बुक करने का काम मिल सकता है

यह छायाचित्र एक सिलाई मशीन का है , आप सोंच  रहे होंगे इसकी क्या ज़रुरत है।  सड़क के किनारे फूटपाथ पर सिलाई मशीन। इसके मालिक है , बीस वर्ष के जावेद पुत्र ज़ाकिर।  वे सिलाई का काम करते है, यही इनकी रोज़ी रोटी का साधन है।  लगभग पांच वर्ष पूर्व ज़िला पुर्णिया , बिहार से अपने बड़े अब्बा  के साथ गुडगाँव आये थे।  इन्हे अपना छाया चित्र खिचवाने से ऐतराज़ है।  यह आस पास के बंगलो में रहने वालो के परदे सिलना, कपड़ो कि मरम्त करना, तथा मज़दूरो कि कपड़ो कि सिलाई करते है।  जो कि बड़े टेलर टेलर के पास नहीं जा सकते है।  इनकी मासिक आमदनी लगभग पांच हज़ार रुपये तक हो जाती है।  यह वज़ीराबाद गाव में एक कमरे में तीन लोगो के साथ रात्रि बिताते है।  जिसका मासिक किराया दो हज़ार रुपये प्रति माह है।  यह चार भाई है जो बिहार में थोड़ी खेती से गुज़र कर रहे है।  इनके साथ वालो से  ज्ञात हुआ कि गाव में इनके हाथो पट्टीदार कि हत्या हो गयी थी , इसी से व बात चीत नहीं करता है , फ़ोटो आदि खिचवाने से बचता है।  जितना कमाते है खर्च कर देते है।  फिर घरवालो से पाने कि उम्मीद रखते है।

बगल में आप एक स्कूटी का छायाचित्र देख रहे है ,   यह मात्र वाहन नहीं है , एक वर्ष पहले श्री महेश चौधरी पुत्र श्री हरी प्रशाद चौधरी कि चलती फिरती दुकान थी हमारे घर के बहार सड़क के किनारे पान मसला बीड़ी सिगरेट दाल मोठ  के पैकेट आदि लटका कर बेचा करते थे।  धीरे धीरे नुक्कड़ पर अपना ठिहा जमाया।  पेप्सी कोका कोला  विक्रय  हेतु बनाये ठेलो पर चार बॉस ज़मीन में गाड़ कर, ऊपर  त्रिपाल तान कर उन्होंने अपनी दूकान सजा ली। अब तो एक गैस का छोटा चूल्हा , छोटा सिलेंडर , कि सहायता से चाय बनाने व बेचने का कार्य करने लगे।  पेप्सी लिम्का पानी कि बोतले सिगरेट पान आदि भीं बेचने लगे।   इनके ग्राहक है कालोनी के संभ्रांत कार वाले नागरिक व आस पडोस के गृह निर्माण में लगे मज़दूर।  यहाँ सुबह सात बजे दूकान खोलते है रात्रि आठ बजे तक जमकर बिक्री करते है।  लगभग बारह हज़ार प्रति माह कमा  लेते है।  श्री महेश चौधरी ने वार्ता के दौरान बताया कि वो इंटर पास है।  उनकी उम्र ४८ वर्ष है , ग्राम घिरसन  , ज़िला वैशाली , बिहार के रहने वाले है।  इनके  ग्राम में भी दूकान का व्यवसाय होता है।  परन्तु उन्हों ने आपसी उधारी व्यहारी  के कारण  , आपने ग्राम में काम करना उचित नहीं समझा।
 पहले पंजाब कि एक मिल में काम किया।  मन उचटने के कारण पंजाब छोड़ गुडगाँव हरयाणा  में आठ वर्ष से गुडगाँव में हैं ।  यहाँ वह  , किराये के घर , आया  नगर में रहते है।  जिसका मासिक किराया तीन हज़ार है।  वह परिवार के साथ रहते है।  इनके २ पुत्र व १ पुत्री है।  एक पुत्र अंसल ग्रुप में काम करता है।  दूसरा कुछ मंद मानसिक स्थिति का है।  जिसे वह अपने साथ दूकान में रखते है।  लड़की आंठवी क्लास में पढ़ रही है।  शिक्षा का महत्व समझते है।  लड़की को उच्च शिक्षा दिलाने कि तम्मन्ना रखतें  है।  श्री चौधरी गुडगाँव के मतदाता है।  जब हमने इनसे पूछा  कि आप किस दल को अच्छा समझते है , उनका कहना था , सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे है।  पहले बड़े बड़े आश्वासन देते है , बड़े बड़े सपने दिखाते है, वादे करते है , जीतने  के बाद पहले सब अपना घर भरते है।  जब मैंने उनसे पुछा कि सुरसा के मुख कि तरह बढती  महंगाई। प्याज़ , आलू, टमाटर आदि वस्तुओ के बढ़तें  दामो के लिए आप  किसे ज़िम्मेवार मानते है।  तो उनका स्पष्ट मत है कि अन्य कारणो के साथ साथ जमाखोरी इसके लिए ज़िम्मेवार है, साथ ही उनपर अंकुश न लगा पाने में  प्रशासन सक्षम नहीं है।   बेरोज़गारी के सवाल पर उन्होंने ने कहा कि यदि व्यक्ति कामकरना चाहे तो किसी ,प्रकार अपनी जीविका चला सकता है। कोई काम छोटा या बडा नहीं होता है। काम तो काम है। करने कि चाहत होनी चाहिए।



Sunday, October 27, 2013

बावर्ची

पर कह 


काली टोपी ,बड़ी हुई दाड़ी ,लाल व नीला रंग का एप्रिन पहिने एक बुजुर्ग सा आदमी को रसोई घर मे देख कर किरन बोली "अरे दीदी यह नयामें कब रख लिया । कितने वेतन पर रखा है । अगर,समय हो तो मेरे घर पर भी काम कर ले । आज कल नवजात शिशु के कारण काम बहुत बढ गया है । कमर में दर्द भी रहता है । काफी देर तक रसोई में खड़ी नहीं रह पाती हूँ । विक्रम को समय से नास्ता ,खाना नहीं मिल पाता है । अरे यह क्या कह रही हो । यह तो तुम्हारे जीजा जी है । क्या पहचान नहीं पाई । पिछले शुक्रवार को ऍम ;जी रोड मॉल में बहू के साथ गई थी । बुरा हो नगर -निगम वालो का जगह -जगह सड़क खोद कर रख देते है । प्रकाश की भी कोई वयस्था ठीक नहीं है । पैर में एड़ी के पास फ़्रक्चेर हो गया । चलना -फिरना मोहाल हो गया । घर के काम के लिये एक कामवाली को बोला था परन्तु वह नहीं आई । शायद ज्यादा नखरे करने के कारण या पता नहीं किसीके भड़काने के वजह से वोह काम पर नही आयी । अब तो एक समस्या आ गई । बेटा व बहू दोनों सुबह जल्दी निकल  जाते है और रात में भी देर हो जाती है । prievat नौकरी में तो यही होता है । होटल व बाज़ार का खाना -नास्ता से कब तक गुजर होती । डाक्टर को दिखाया तो एक माह का आराम बताया । तब तेरे जीजा जी ने रसोई का काम व घर का काम.बाजार का काम मेरी तीमारदारी का भार उठया । सच ही ये खाना -नास्ता बहुत ही स्वाद वाला तथा तन्मयता से बनाते है । कुछ -कुछ गुनगुनाया भी करते है । अभी जब तुम इनके हाथ का नास्ता व चाय पियोगी तो खुद ही समझ जाओगी । अब बोल.जब मेरा पैर ठीक हो जायगा तो इस बावर्ची को तेरे घर भेज दू -कल्पना ने खिलखिलाते हुया कहा । किरन ने शर्माते हुए कहा दीदी आप भी 

Thursday, October 24, 2013

सुबह की सैर

ज़िन्दगी की एक रात और बीत गई। नीरव , शांत एकान्त , शीतकाल का प्रारम्भ , जब दरवाज़ा खोल कर बाहर आया।  हवा में हलकी- हलकी ठण्ड थी। धुंधलका सा फैला था।  निशा जा चुकी थी।  प्राची दिशा में कुछ - कुछ लालिमा उभर रही थी।  रवि का प्रसव - काल था।  बाल रवि जन्म लेने को मचल रहा था।  देखते ही देखते सुनहरा  प्रकाश वृक्षों व गगन चुम्बी इमारतों की पृष्ट भूमि में दृष्टिगोचर होने लगा।  

दैनिक क्रिया से निपट कर हम घर से बहार मैदान में निकल आये। मेरी देखा देखी दिनेश भी गगन रूपी मैदान में चहल कदमी करने लगा।  संसार का काम - धाम प्रारंभ हो गया।  सामने देखा की एक सभ्रांत महिला स्पोर्ट्स साइकिल में पैडल मरती तेजी से जा रहीं हैं।  इनका उद्देश प्रातःकालीन  व्यायाम है। 

दूसरी ओर एक स्त्री भी साइकिल से जा रही है।  इनका उद्देश किसी के घर पर पहुच कर बर्तन चौक झरन पोछन  कर जीविका चलाना है।  ट्रैकिंग सूट व बूट में एक युवक तेजी से साइकिल चला कर पास से निकला।  दूसरी और एक नौजवान साइकिल के हैंडल में एक प्लास्टिक की बाल्टी लटकाए गुज़रा।  पता किया की घर दूर है।  बंगलो में साहब लोगो की कार साफ़ करने का काम करता है।  एक के लिए साइकिलिंग शौक व व्यायाम है।  दूसरे के लिए मजबूरी।   सामने से दो अधेढ  पुरुष साइकिल से आ रहे थे।  उनमें से एक पुरुष अच्छे वैभवशाली परिवार का लगता था।  उनका भी उद्देश व्यायाम करना ही है।  दूसरा पुरुष सुरक्षा गार्ड की वर्दी पहने था।  उनीदी आखों से लगता था की किसी बंगले से कार्य समाप्त कर अपने घर की ओर  जा रहा है. 

अरे यह क्या है ? साइकिल के कैरिएर की दोनों ओर जुटे के बड़े बड़े थैले लटकाए उन्हें ठसा ठस कागज़ों से भरे तेज़ी से चला आ रहा है।  पास आया तो यह ज्ञात हुआ की यह अखबार बाटने वाला हौकर है।  यह तो अच्छा काम है।  काम का काम ऊपर से व्यायाम एक ही साथ दोनों कार्य संपन्न हो रहे है।  

अभी कुछ ही दूर बढ़ा था की देखा कि टहलने वालों में कुछ के हाथों में एक ओर ज़ंजीर दूसरी ओर स्वान है।  किसिम - किसिम के स्वान , कही तो बड़ा बुल-डॉग, कही छोटी छोटी पमेलिअन, भूरे , काले, चितकबरे , बड़े बालो वाले , चिकनी त्वचा वाले विभिन्न प्रकार के स्वान , लगा की डॉग शो देख रहे है।  

यह क्या? एक स्थूल काया की सभ्रान्त महिला , एक स्वान को ले कर जा रही है।   स्वान उन्हें खीच रहा है।   यह पता नहीं चलता की वह स्वान को टहला रही है या स्वान उन्हें सैर करने निकला है।  

दूसरी ओर  एक सज्जन एक स्वान को लेकर चले आ रहे थे।  साथ ही में एक ओर एक व्यक्ति जो दूसरी ओर एक स्वान की ओर  आ रहे थे।  अपने अपने स्वान को वह अपने और खीच रहे थे।   दोनों स्वान एक दुसरे को सूंघने लगे और एक दुसरे से कुछ बात करने लगे।  वैसे प्रायः एक स्वान दुसरे स्वान को देख कर भौकता है परन्तु यहाँ तो कुछ दूसरा ही नज़ारा था।  कुछ कौतुहल उत्पन हुआ।  मैं कल्पना करने लगा की वोह क्या बातें कर रहे होगे।  यहाँ हम पुरुष स्वान का नाम विलियम और स्त्री स्वान का नाम पूनम रख देते है।  परस्पर व्यहार से लगता था की वह प्रेमी - प्रेमिका है।  वक्त की मार ने उन्हें बिलग कर अलग अलग मालिको के हवाले कर दिया है।  

विलियम ने कहा , "पूनम आज कल तुम कुछ दुबली दिख रही हो।  ठीक से खाती पीती नहीं हो।"  "क्या करें , हमारे मालिक बाजपाई जी पूर्ण शाकाहारी है।  मॉस मछली का तो नाम लेना ही गुनहा  है ।  हाँ तुम तो काफी सेहत मंद लग रहे हो " कुछ उदास होते हुए पूनम बोली।  

"यह तो है हमारे मालिक रिचर्ड शर्मन तो रोज़ मांसाहार करते है।  काफी हडियाँ और मॉस खाने को उपलब्ध रहता है।  "

सडकों  पर धीरे धीरे स्कूल बसों का आवागमन बढ़ गया।  जगह जगह स्त्री पुरुष अपने बचो के साथ स्कूल बस की प्रतीक्षा में खडे दिखे।  मैं कल्पना करने लगा की मैं कब प्रतीक्षा करूंगा।  रवि अपनी लालिमा छोड तेज प्रकाश के साथ चमकने लगा।  हम भी घर की ओर लौट चले।