दिनांक 31 दिसम्बर 2013
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मुज्जफ़रनगर के दंगों का दर्द्र
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हिन्दु -मुस्लिम -सिख - ईसाई,
आपस में है सब भाई - भाई।
सदियों से फ़िजा में,
यही आवाज़ तैरती आई।
पता नहीं क्यों,
वैमनस्ता की
कैसे धुंध छाई।
पहले तो अपनों ने ही,
दंगों में हमें उजाड़ा।
फिर तो नन्हें -नन्हें,
बच्चों को ठण्ड ने मारा।
फिर पक्ष --विपक्ष में,
होने लगी राजनीति,
मरी इंसानी यत,
शेष बेतुके बयानों ने मारा। .
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मुज्जफ़रनगर के दंगों का दर्द्र
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हिन्दु -मुस्लिम -सिख - ईसाई,
आपस में है सब भाई - भाई।
सदियों से फ़िजा में,
यही आवाज़ तैरती आई।
पता नहीं क्यों,
वैमनस्ता की
कैसे धुंध छाई।
पहले तो अपनों ने ही,
दंगों में हमें उजाड़ा।
फिर तो नन्हें -नन्हें,
बच्चों को ठण्ड ने मारा।
फिर पक्ष --विपक्ष में,
होने लगी राजनीति,
मरी इंसानी यत,
शेष बेतुके बयानों ने मारा। .
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