बेक़रारी से है ,इन्तजार उसे किसीका।
जो आ सके समय से ,ये जाम है उसीका
है ,मेज खाली -खाली ,खाली है कुर्सियाँ भी।
उन्हे है बेसब्री से इन्तजार बस उसी का।
ढ़ल रही है शाम ,उतरती है निशा भी।
चढ़ते हुए , येवन की भटकी हुई दिशा सी।
जुल्फों को कस के बाधा ,सीने को कुछ उभरा।
है ,हाथ क़मर में ,है दिलकश ये है नजारा।
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