प्राची दिशा में कंकरीट के जगलों के पीछे से निकलती नारंगी ,सुनहरी किरणे ,भुंवन -भासकर के आगमन की घोषणा कर रही थी। वातावरण में हल्की -हल्की धुंध शीत का अहसास करा रही थी। भो -भो की आवाज ने हमारा ध्यान आकर्षित किया। देखा कि एक कूड़े के ढेर के पास ,जहाँ सूकर लोट रहे थे।
एक बालक कुछ खोज रहा है। उसके आस -पास कुत्तो का झुण्ड उसकी ओर देख कर भूक रहा है। वह निरीह बालक अपने झोली को हथियार बनाये ,चारो ओर घुमा कर कुत्तो से मोर्चा ले रहा था। उसका भाई तेजी से बोतल बटोर रहा था। यह कुत्ते भी कितने अजीब है। क्या यह बालक इन्हें चोर -उचक्का लग रहा था। ये आवारा कुत्ते भी उसे इन्सान न मान अपना दुश्मन समझ रहे है।
एक लकड़ी का लट्ठ उठा कर हम जो उनकी ओर लपके तो कुत्ते दूर तक भोकते हुए चले गए। हमने उनके करीब आ कर कहा कि तुम कया खोजते हो। उन्होने कहा कुछ बोतले ,कुछ लोहे का सामान। हमने पुन :पूछा कि उसका कया करोगे। उसने धीरे से कहा कि कबाड़ी वालो को बेच कर कुछ पैसे मिलेगें। उनसे खाने का सामान खरीद लूंगा।
यह भी जिन्दगी है ,एक इन्सान के बच्चे की। स्कूल जाने के दिनों में वह कूड़े में जिन्दगी खोजता है। क्या हुआ सर्व -शिच्छा अभियान का। कहाँ गया शिच्छा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार। न जाने कितने नौनिहाल शिच्छा प्राप्त करने से वचिंत है। इस देश की पैसठ वरसों की आजादी के बाद हम कैसी प्रगति कर रहें है।
हमने पूछा कि कया नाम है तुम्हरा। एक बोला हमारा नाम है रहमान। दूसरा बोला हमारा नाम है सुल्तान।
हम दोनों भाई -भाई है। हमने पूछा कि घर में और कौन -कौन है। अम्मी है। अब्बा है। नफ़ीसा ,रजिया। नरगिस तीन बहने है। तुम्हारे अब्बा क्या करते है। उन्होंने कहा कि वह कुछ नही करते है। वह बीमार है। अम्मी पास के घरों में साफ़ -सफ़ाई का काम करती है। हम पाँच भाई -बहन कूड़ा बीनते है। हमनें पूछा कि कुछ सुबह से खाया है कि नही। हाँ कल रात की बची रोटी पानी से भिगो कर खाई है। हमने पूछा भूख लगी है। शर्माते हुये उन्होंने हा कहा। हम उन्हें लेकर चाय की दुकान पर आए। ब्रेड व चाय पिला कर उन्हें
विदा किया।
दूसरी ओर से एक बस आकर रुकी। सूट व टाई से सजे - धजे बच्चे। किसी बड़े अग्रेजी स्कूल के विद्यार्थी बैठे थे। मनं फिर सोचने लगा कि यह कैसी विषमता है। मानव -मानव में कितना अन्तर है। एक यह बचपन है ,जो सज -धज कर सर्व साधन सुलभ , चैन की बंसी बजाता है। जो आगे चल कर,पड़ लिख कर ,प्रशासन का कार्यभार सम्भालेगा। एक वो बचपन है जो कूड़े के ढेर में जिंदगी खोजता है। जो आगे चल कर मजदूर बनेगा शोचित होगा कुपोशित होगा।
दूसरी ओर से एक बस आकर रुकी। सूट व टाई से सजे - धजे बच्चे। किसी बड़े अग्रेजी स्कूल के विद्यार्थी बैठे थे। मनं फिर सोचने लगा कि यह कैसी विषमता है। मानव -मानव में कितना अन्तर है। एक यह बचपन है ,जो सज -धज कर सर्व साधन सुलभ , चैन की बंसी बजाता है। जो आगे चल कर,पड़ लिख कर ,प्रशासन का कार्यभार सम्भालेगा। एक वो बचपन है जो कूड़े के ढेर में जिंदगी खोजता है। जो आगे चल कर मजदूर बनेगा शोचित होगा कुपोशित होगा।
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