आशिक़ी में यही रवायत है **********
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ख़ामोश जुबां है उनकी सहमी निगाहें,
सब कुछ बयां करती है।
सरे आम वह उनसे न मिलकर,
छुप -छुप के मिला करती है।
जमाने भर से ग़िला उनको,
महबूब से गंम्भीर शिकायत है।
न इस पल, न उस पल राहत उनको,
आशिकी में यही रवायत है।
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ख़ामोश जुबां है उनकी सहमी निगाहें,
सब कुछ बयां करती है।
सरे आम वह उनसे न मिलकर,
छुप -छुप के मिला करती है।
जमाने भर से ग़िला उनको,
महबूब से गंम्भीर शिकायत है।
न इस पल, न उस पल राहत उनको,
आशिकी में यही रवायत है।