सोच कर शरम आती है यों ***********
जो जिन्दगी के सहारे थे,के गुजरने के बाद,
जूझ कर जिन्दगी से मुस्कराती थी वो।
कर के परिश्रम कठिन दोनों समय,
दोनों बच्चो को अपने पालती थी वो।
हमे रंज है ये लखनऊ की "निर्भया
हम कुछ भी न कर सके तुम्हारे लिये
सोच कर शरम आती है यो।
जो जिन्दगी के सहारे थे,के गुजरने के बाद,
जूझ कर जिन्दगी से मुस्कराती थी वो।
कर के परिश्रम कठिन दोनों समय,
दोनों बच्चो को अपने पालती थी वो।
हमे रंज है ये लखनऊ की "निर्भया
हम कुछ भी न कर सके तुम्हारे लिये
सोच कर शरम आती है यो।
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