Saturday, November 2, 2013

लज्जा का दर्द

भड -भड , तड़ाक -  तड़ाक  , छनं - छनं , खड़बड़ - खड़बड़  करता हुआ तेज शोर मेरे कानो में तेज कटार  कि तरह घुस रहा था।  मैंने कहा , अरे  लज्जा रसोई घर में तूफ़ान आ गया है या भूकम्प का प्रकोप है।  बर्तनो को क्यों इतनी  ज़ोर- ज़ोर से पटक रही हो। अरे कहा अंकलजी , हम तो बर्तन नीचे रख के धो रहे है , लज्जा ने मुस्कुराते हुए कहा।  हम तो जैसे रोज़ बर्तन चौक करते है , आज भी वैसे ही कर रहे है।  मेरी पत्नी ने कहा अरे लज्जा रानी अब ज़रा  धीरे से बर्तन रखा करो क्यों कि तुम्हारे अंकल ने कानो में ४२ हज़ार कि नयी  सुनने कि मशीन लगाई है।  अब  उन्हें हर आवाज़ तेज सुनाई देती है।  पंखा चलने कि आवाज़ , यहाँ तक की तेज हवा चलने कि सरसराहट भी सुनाई देती है। 

दुबली - पतली या कह  लो, छरहरी सावली काया में उल्लास से चमकती हुई आँखें , हर समय  हस्ती खिलखिलाती खुश मिजाज़ , दोनों हाथो को तेजी से आगे पीछे फेकते , तेज चल में चलती हमारी काम वाली लज्जा जिसे हम लज्जा मेल के नाम से पुकारते है। लज्जा ने मुस्कुराते हुए कहा कि अंकलजी यदि हम तेजी से काम नहीं करेंगे तो ७-८ घरों में कैसे काम निपटेगा।  यह सुन कर हमारे में कई सवाल उमरने लगे।  हमने कहा कि  लज्जा , तुम अपनी दिनचर्या बताओ।  वह  कुछ संकुचाती , शर्माती  हुए बोली अंकलजी हम सुबह  ५ बजे उठ जाइत  है घर साफ़ सूफ करके , घरवालो के लिए चाय नाश्ता खाना  बनाईत  है।  करीब ७ बजत-  बजत घरे से निकर जाइत है।  ७ घरन मा चौक बर्तन साफ़ सफाई पौंछा करत करत दोपहर ३ बज जात है।  घर आईके थोडा  बहुत खाना खइके आराम करित  है।  यही समय हम टीवी देखित है। हमका सी०  आई०  डी०  सीरीयल  बहुत नीक लगत है।  उमा दया तो हमका बहुते बहादुर लागत  है।  यह कोई चार बजत - बजत हम फिर घर से निकर परित है।  सब घरन मा बरतन धोवत - धावत ८ बजे तलक घरे लौट आईत  है।  फिर घरे का काम धंधा तो हमें ही करे का परत है।  इ सब करत- करत खात- पियत दस बज जात है।  ईके बाद हम सी०  आई०  डी-०  सीरियल ज़रूर देखित  है।  फिर थक थुक के सो जाइत  है फिर से सुबेरे उठे खातिर।

अच्छा यह बताओ इतने घरो में काम करती हो , तुम्हे कितना  पैसा मिल जाता है।  कुछ ठंडी आह के साथ कहती है कि करीब ४ हज़ार कमा  लेइत है।  हमने कुछ सोच  के आगे पूछा  , कि तुम्हारे परिवार में  कितने लोग है।  इतनी भीषड़ महंगाई में घर का खर्च चलाना तो बहुत ही कठिन है।  अंकिल जी , हमरे घरे मा हमरी  सास है , आदमी है , और ३ लरिका है।  सास के नाम बी०  पी ०  एल ०  कार्ड है उमा चावल , गेहू कबहु कबहु चीनी मिल जात  है।  कौनी तरीके  से बाल - बच्चन  का पाल  रहे है।  बीमारी - अजारी व त्योहार  आदि माँ जहाँ -जहाँ  काम करित  है कुछ उधर पाजाइत  है।  ऐसे ही ज़िन्दगी कि गाड़ी  खैचित  है। वह  कुछ उदास हो जाती है , हमने फिर धीरे से पुछा , कि तुम्हारा पति भी तो कुछ कमाता होगा।  बड़े  ही सर्द स्वास लेते हुए बोली  यही तो दुःख है हमका वो कभी -कभी  काम करत है।  जी लगा  कर कभी काम  नहीं करत है।  आकारु मनाई है जहा काम करत है , अगर कुछ कोई कह  दिए तो काम छोड  घर बैठ जात है।  हम कुछ कह देई तो हमका  हरकाए देत  है।  मार- पीट  करे का तैयार हो जात है।

अतीत में खोते हुए आगे बताती है कि हमर बियाओ १२ वर्ष कि उम्र मा होई गवा रहे।  २० बरस होई गए है , हमरा मायका  डालीगंज में है।  जब बियाह के बाद हम इंदिरा नगर ससुराल आये ।  हमरे ससुर तांगा  चलावत रहे।  अच्छी कमाई हुई जावत रहे।  उनके मरे के बाद हमका घरन - घरन चौक बर्तन का काम करेका परा।  कहे कि हमरे आदमी का काम करे मा शुरू से ही मन नहीं लगत रहे।  कुछ दिन तक तो हम मरे सरम के कहु जात नहीं रहे , फिर धीरे धीरे बाल बच्चा होते  गए । खर्च बढत गवा हमरे घर भी काम वाले बढत गए।  काफी उदास होकर वो बोली , इतना सब करत है  पर कौनी बात पर उई गुस्साए जात है तो, हम अगर कुछ कह देई  तो मारे कि खातिर दौरत है और कहत जात है हम तुमरी  कमाई खात  है पर तुमरी  धौस हम  नहीं सह सकित है। 

"नारी  जीवन तेरी येही कहानी।  आँचल में है दूध , और आँखों में पानी " महिला सशक्तीकरण  , ८ मार्च विश्व महिला दिवस कब सार्थक होंगे।  करोड़ो  महिलाओं का शोषण कब तक चलेगा....……………………… ?

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