
ऐसे ही गुडगाँव में भी काफी संख्या में मज़दूर, छोटे रोजगारी ,रोज़ी रोटी कि खोज में आये है। आपका परिचय हम तेरह वर्ष के किशोर ,राज किशोर पुत्र उत्तम से करते है।
इन्होने सड़क के किनारे चार डंडे गढ़ कर ऊपर पन्नी कि छत बनाई। ज़मीन पर चार लोहे के रोड गाड़ कर प्लाई का पटरा जमा दिया। पांच किलो का गैस सिलिंडर रख कर चाय बनाने का काम प्रारम्भ कर दिए। साथ ही कुछ सस्ते किस्म के बिस्कुट नमकीन पान मसला व सस्ती बीड़ी ,सिगरेट आदि सजा ली। लो तैयार हो गयी दूकान। इनके ग्राहक है आस पास रोजंदारी में घर बनाने का काम करने वाले मज़दूर। जनाब आठवी पास है, नवी क्लास में फ़ेल हो गए। पिताजी ने फटकार लगाई तो पन्ना, मध्य प्रदेश से भाग कर अपने दीदी जीजा के पास आ गए। सुबह छै बजे दूकान खोल कर साय छै बजे तक कार्य करते है। विश्वास तो नहीं होता पर उनके कहने के अनुसार रोज़ कि बिक्री लगभग एक हज़ार रुपये कि हो जाती है। इसमें लाभ लगभग दो तीन सो रुपये हो जाता है।
खाना खुद पकाते है क्योंकि इनके जीजा व दीदी मकान बनाने कि मजदूरी करते है। पास ही ईंटो कि चार दीवार ऊपर टीन का छप्पर यही इनका निवास है। यहाँ एक तरफ तो गगन चुम्बी आट्टालिका ,महंगे विला हैं। दूसरी तरफ कमर झुका कर घुसने को मज़बूर इन्सान । इनमें भी आदमी रहते है। यह अच्छी बात है कि महाशय का मन पढ़ाई से पूरी तरह उचटा नहीं है। फिरघर जाकर पढ़ाना चाहते है। हमने पुछा आगे क्या करोगे तो बताया कि हम बैठ कर काम करने वाला कार्य चाहते है। हमने कहा कि इतनी कम पढ़ाई में कैसे ऐसी नौकरी मिलेगी। बहुत लोग बेरोज़गार घूम रहे है। उसने मेरा ज्ञानवर्धन करते हुए बताया कि बड़े बड़े स्टोर में आर्डर बुक करने का काम मिल सकता है


पहले पंजाब कि एक मिल में काम किया। मन उचटने के कारण पंजाब छोड़ गुडगाँव हरयाणा में आठ वर्ष से गुडगाँव में हैं । यहाँ वह , किराये के घर , आया नगर में रहते है। जिसका मासिक किराया तीन हज़ार है। वह परिवार के साथ रहते है। इनके २ पुत्र व १ पुत्री है। एक पुत्र अंसल ग्रुप में काम करता है। दूसरा कुछ मंद मानसिक स्थिति का है। जिसे वह अपने साथ दूकान में रखते है। लड़की आंठवी क्लास में पढ़ रही है। शिक्षा का महत्व समझते है। लड़की को उच्च शिक्षा दिलाने कि तम्मन्ना रखतें है। श्री चौधरी गुडगाँव के मतदाता है। जब हमने इनसे पूछा कि आप किस दल को अच्छा समझते है , उनका कहना था , सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे है। पहले बड़े बड़े आश्वासन देते है , बड़े बड़े सपने दिखाते है, वादे करते है , जीतने के बाद पहले सब अपना घर भरते है। जब मैंने उनसे पुछा कि सुरसा के मुख कि तरह बढती महंगाई। प्याज़ , आलू, टमाटर आदि वस्तुओ के बढ़तें दामो के लिए आप किसे ज़िम्मेवार मानते है। तो उनका स्पष्ट मत है कि अन्य कारणो के साथ साथ जमाखोरी इसके लिए ज़िम्मेवार है, साथ ही उनपर अंकुश न लगा पाने में प्रशासन सक्षम नहीं है। बेरोज़गारी के सवाल पर उन्होंने ने कहा कि यदि व्यक्ति कामकरना चाहे तो किसी ,प्रकार अपनी जीविका चला सकता है। कोई काम छोटा या बडा नहीं होता है। काम तो काम है। करने कि चाहत होनी चाहिए।
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