Friday, November 1, 2013

यह भी दुकाने है

रोजगार कि तलाश में आदिकाल  से मानव अपने मुख्या स्थल को छोड़कर कर दुसरे शेहरो व देशो में पलायन करता आ रहा है। जब गावो में कृषि का कार्य नहीं होता है या परिवार के बढ़ने पर जोत कम हो जाती है, या स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध नहीं होता है  तो ग्रामीण जन शहरो की  ओर रूख करते है।  पूर्व में विश्व के अनेक देशो में जैसे मरौशउस , फिजी, गुयाना आदि देशो में गिरमिटिया मज़दूर के रूप में बिहार, मध्य प्रदेश,पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग बड़ी संख्या में गए आज भी खाड़ी देशो में काफी संख्या में लोग रोज़गार कि तलाश में जाते है।
 ऐसे ही गुडगाँव में  भी काफी संख्या में मज़दूर, छोटे रोजगारी ,रोज़ी रोटी कि खोज में आये है।  आपका परिचय हम तेरह वर्ष के किशोर ,राज किशोर पुत्र  उत्तम से करते है।
 इन्होने सड़क के किनारे चार डंडे गढ़ कर ऊपर पन्नी कि छत बनाई।  ज़मीन पर चार लोहे के रोड गाड़ कर प्लाई का पटरा जमा दिया।  पांच किलो का गैस सिलिंडर रख कर चाय बनाने का काम प्रारम्भ कर दिए।  साथ ही कुछ सस्ते किस्म के बिस्कुट नमकीन पान  मसला व सस्ती बीड़ी ,सिगरेट आदि सजा ली।  लो तैयार  हो गयी दूकान।  इनके  ग्राहक है आस  पास रोजंदारी में घर बनाने का काम करने वाले मज़दूर।  जनाब आठवी पास है, नवी क्लास में फ़ेल हो गए।  पिताजी ने फटकार लगाई तो पन्ना, मध्य प्रदेश से भाग कर अपने दीदी जीजा के पास आ गए।  सुबह छै बजे दूकान खोल कर साय छै  बजे तक कार्य करते है।  विश्वास तो नहीं होता पर उनके कहने के अनुसार रोज़ कि बिक्री लगभग एक हज़ार रुपये कि हो जाती है।  इसमें लाभ लगभग दो तीन सो रुपये हो जाता है।
 खाना खुद पकाते है क्योंकि इनके जीजा व दीदी मकान बनाने कि मजदूरी करते है।  पास ही ईंटो  कि चार दीवार ऊपर टीन का छप्पर यही  इनका निवास है।  यहाँ एक तरफ तो  गगन चुम्बी आट्टालिका ,महंगे विला हैं।  दूसरी तरफ कमर झुका कर घुसने को मज़बूर इन्सान ।  इनमें भी आदमी रहते है।  यह अच्छी बात है कि महाशय का मन पढ़ाई से पूरी तरह उचटा नहीं है।  फिरघर जाकर पढ़ाना चाहते है।  हमने पुछा आगे क्या करोगे तो बताया कि हम बैठ कर  काम करने वाला कार्य चाहते है।  हमने कहा कि इतनी कम पढ़ाई में कैसे ऐसी नौकरी मिलेगी।  बहुत  लोग बेरोज़गार घूम रहे है।  उसने मेरा ज्ञानवर्धन करते हुए बताया कि बड़े बड़े स्टोर में आर्डर बुक करने का काम मिल सकता है

यह छायाचित्र एक सिलाई मशीन का है , आप सोंच  रहे होंगे इसकी क्या ज़रुरत है।  सड़क के किनारे फूटपाथ पर सिलाई मशीन। इसके मालिक है , बीस वर्ष के जावेद पुत्र ज़ाकिर।  वे सिलाई का काम करते है, यही इनकी रोज़ी रोटी का साधन है।  लगभग पांच वर्ष पूर्व ज़िला पुर्णिया , बिहार से अपने बड़े अब्बा  के साथ गुडगाँव आये थे।  इन्हे अपना छाया चित्र खिचवाने से ऐतराज़ है।  यह आस पास के बंगलो में रहने वालो के परदे सिलना, कपड़ो कि मरम्त करना, तथा मज़दूरो कि कपड़ो कि सिलाई करते है।  जो कि बड़े टेलर टेलर के पास नहीं जा सकते है।  इनकी मासिक आमदनी लगभग पांच हज़ार रुपये तक हो जाती है।  यह वज़ीराबाद गाव में एक कमरे में तीन लोगो के साथ रात्रि बिताते है।  जिसका मासिक किराया दो हज़ार रुपये प्रति माह है।  यह चार भाई है जो बिहार में थोड़ी खेती से गुज़र कर रहे है।  इनके साथ वालो से  ज्ञात हुआ कि गाव में इनके हाथो पट्टीदार कि हत्या हो गयी थी , इसी से व बात चीत नहीं करता है , फ़ोटो आदि खिचवाने से बचता है।  जितना कमाते है खर्च कर देते है।  फिर घरवालो से पाने कि उम्मीद रखते है।

बगल में आप एक स्कूटी का छायाचित्र देख रहे है ,   यह मात्र वाहन नहीं है , एक वर्ष पहले श्री महेश चौधरी पुत्र श्री हरी प्रशाद चौधरी कि चलती फिरती दुकान थी हमारे घर के बहार सड़क के किनारे पान मसला बीड़ी सिगरेट दाल मोठ  के पैकेट आदि लटका कर बेचा करते थे।  धीरे धीरे नुक्कड़ पर अपना ठिहा जमाया।  पेप्सी कोका कोला  विक्रय  हेतु बनाये ठेलो पर चार बॉस ज़मीन में गाड़ कर, ऊपर  त्रिपाल तान कर उन्होंने अपनी दूकान सजा ली। अब तो एक गैस का छोटा चूल्हा , छोटा सिलेंडर , कि सहायता से चाय बनाने व बेचने का कार्य करने लगे।  पेप्सी लिम्का पानी कि बोतले सिगरेट पान आदि भीं बेचने लगे।   इनके ग्राहक है कालोनी के संभ्रांत कार वाले नागरिक व आस पडोस के गृह निर्माण में लगे मज़दूर।  यहाँ सुबह सात बजे दूकान खोलते है रात्रि आठ बजे तक जमकर बिक्री करते है।  लगभग बारह हज़ार प्रति माह कमा  लेते है।  श्री महेश चौधरी ने वार्ता के दौरान बताया कि वो इंटर पास है।  उनकी उम्र ४८ वर्ष है , ग्राम घिरसन  , ज़िला वैशाली , बिहार के रहने वाले है।  इनके  ग्राम में भी दूकान का व्यवसाय होता है।  परन्तु उन्हों ने आपसी उधारी व्यहारी  के कारण  , आपने ग्राम में काम करना उचित नहीं समझा।
 पहले पंजाब कि एक मिल में काम किया।  मन उचटने के कारण पंजाब छोड़ गुडगाँव हरयाणा  में आठ वर्ष से गुडगाँव में हैं ।  यहाँ वह  , किराये के घर , आया  नगर में रहते है।  जिसका मासिक किराया तीन हज़ार है।  वह परिवार के साथ रहते है।  इनके २ पुत्र व १ पुत्री है।  एक पुत्र अंसल ग्रुप में काम करता है।  दूसरा कुछ मंद मानसिक स्थिति का है।  जिसे वह अपने साथ दूकान में रखते है।  लड़की आंठवी क्लास में पढ़ रही है।  शिक्षा का महत्व समझते है।  लड़की को उच्च शिक्षा दिलाने कि तम्मन्ना रखतें  है।  श्री चौधरी गुडगाँव के मतदाता है।  जब हमने इनसे पूछा  कि आप किस दल को अच्छा समझते है , उनका कहना था , सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे है।  पहले बड़े बड़े आश्वासन देते है , बड़े बड़े सपने दिखाते है, वादे करते है , जीतने  के बाद पहले सब अपना घर भरते है।  जब मैंने उनसे पुछा कि सुरसा के मुख कि तरह बढती  महंगाई। प्याज़ , आलू, टमाटर आदि वस्तुओ के बढ़तें  दामो के लिए आप  किसे ज़िम्मेवार मानते है।  तो उनका स्पष्ट मत है कि अन्य कारणो के साथ साथ जमाखोरी इसके लिए ज़िम्मेवार है, साथ ही उनपर अंकुश न लगा पाने में  प्रशासन सक्षम नहीं है।   बेरोज़गारी के सवाल पर उन्होंने ने कहा कि यदि व्यक्ति कामकरना चाहे तो किसी ,प्रकार अपनी जीविका चला सकता है। कोई काम छोटा या बडा नहीं होता है। काम तो काम है। करने कि चाहत होनी चाहिए।



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