Monday, November 4, 2013

अधूरे सपने अधूरी ज़िन्दगी

मनोरम ने कभी सपने में भी नही सोचा था कि उसकी जिन्दगी में  ये वक्त भी आयेगा । अपने छोटे -छोटे बच्चो को छोड़ कर, वह रगीन सपनो  के संसार  में खो जायेगी । पुरानी यादों को कुरेदते हुए मनोरमा भूत काल  में प्रवेश कर गयी।  छाया दीदी क्या बताएं , हमारी मात मारी गयी थी । हम पाण्डेय जी चिकिचुपड़ी बातों में आये गये । बचपन मा हमार लगन हुए गवा रहे, उस वकत हमरी उमर १२-१३ वर्ष के हुई । हमार मायका गोंडा सहर में रहा । हम पांचवी दरजा तक पढ़ाई कीन रहा, हमार ससुराल देहात में रहा हुआं खेती हुवत रहा । हमका देहात मा  तनको नीक ना लागत रहा । हम सोचा करीत रहे कि शहर मा हमरा आदमी रहे । धीरे -धीरे हमरा परिवार बढ़े लगा । २२ बरस के उमर तक हमरे दो लरिका वा एक बिटियां हो गए । हमारे सास ससुर बूढ़े रहे यह खातिर खेत पात का काम हमरे मनई देखेत रहे । हम चाहित रहे के खेत पात बेच के सब लोग सहर मा रहे । हमरे सपना मा हर बखत सहर के सिनेमा ,बाजार , बिजली ,पानी, सड़क आराम का सामान देखाये देत राहे । जबकि गाव के पनाला बह्त गालियाँ, बिजली गाव में रहे नहीं तो टी०वी० भी नहीं रहे । मुह अँधेरे उठ जाओ और दिसा मैदान से होके घर के चूल्हा -चौका मा जुट जाओ। कौनो होटल वहाँ कहाँ धरा । हमारा शहर मा रहे का सपना अधूरा था । हमारा आदमी दिन भर खेतन मा हाड- तोड़ मेहनत करत रहे । थक जात रहे । शाम का आयके खाना खाये के जल्दी सो जात रहे, कहे कि जल्दी सुबह उठ के भैंसों का दुध शहर पहुचाना का रहे । हम वोसे बातें  करेका तरसा करी ।
हमरे घर के बगल मा एक बाजपयी जी रहत रहे । उनकी बिटिया सीमा गाव  के स्कूल मा पढ़ावत रहे । सीमा दीदी हमसे ६ बरस बड़ी रहे । उनका विवाह बनारस में रहे वाले पाण्डेय जी के साथ भवा  रहे । स्कूल के नौकरी के वजह से सीमा दीदी अपने ससुराल नहीं गयी । पाण्डेय जी हफ्ता -हफ्ता मा आवत रहे । हम उनके घरे आवत -जात रहे । पड़ोस का रिस्ता से पाण्डेय जी जीजा लागत रहे । आपस में हसी -मजाक चलत रहे । पाण्डेय  जी हमका शहर की बातों से लुभावत रहे । वह हमार कमजोरी जान लिहिन । एक बार उनहोने हमसे कहा कि चलो मनोरमां शहर मा तुमका सिनेमा देखाये । हम कहा कि हमरे घर वाले कैसे जाएँ देहे । जीजा कहिन हम घरे बात कर लेबे ।
हम उनके साथ सिनिमा देखे शहर गये रहन । जब  शाम के गाव लौटे खातिर हम बस अड्डा आये तो पता चला कि बसन की हड़ताल हुए गयी है । कहूँ मारपीट  भई रहे । करफू लाग गवा । अब तो हम बड़ी साँसत में सोचत रहे कि अब का करी । पाण्डेय जीजा कहिन कि अब तो यहीं रूकिये का पड़ी । वह हमका एक होटल मा लिवा ले गए । खाना-वाना खाये के बाद कोका -कोला पिये लागे । हमका  भी एक गिलास मा पिये का दिहिन। हम  कहा के हमका नीक नहीं लागत हम नही पीयब । वो हमको बच्चों के कसम दिलाये लगे । हम मज़बूरी  मा मन मारी के कोका-कोला पिये का परा । कुछ देर बाद हमरी आखें बंद होने लगी। कुछ चक्कर सा आवे लगा । इके बाद हमका ऐसा लगा कि कोई हमरे पास सट के बैठा है। धीर-धीरे कोई हाँथ सहलाता है । फिर हमका होश नहीं रहा ।
सुबह हम जब जगे तो हमार सर भरी-भरी लागत रहे और हमरे कपडा पलंग के नीचे पड़े रहे । हमरी आबरू पर डांका पडिगा रहे । हम रोवत जाएत और उनका बुरा -भला कहत जायेत रहे । जीजा हमका समझावत रहे कि वो हमार ज़िंदगी भर साथ निभावे का तैयार है । हमका आपने साथ ही शहर में रखे खातिर कसम खान लगे । उनका तबादला बनारस से लखनऊ हुए गवा रहे । अब जल्दी-जल्दी गाव नहीं आ पावत रहे । हम कहा कि सीमा दीदी का का होई । अरे सीमा तोह हमारे साथ लखनऊ जा नहीं पायेगीं, उनकी नौकरी गाव में है और वो अपनी नौकरी छोड़ का तैयार नहीं है --जीजा ने समझते हुए कहा ।
जब दूसरे दिन हम गाव लौटे तो घर मैं बड़ा हो हल्ला मचा। जीजा तो हमका बस मैं बैठा के बनारस चले गए, हमका अकेले हि गाव आना पड़ा। हमरे सास ससुर चिल्लावत रहे ------अरी कल मुही सारी रात कहाँ रही ।
फिर हमरी तो बहुत पिटाई हुई। हमरा आदमी जैसे पागल हुए गवा । बैल हाके वाले हंटर से मारत -मारत अधमरा कर दिहिस । कहत जात हरामजादी कहाँ मुह काला किहो । बाल बच्चा भी डराये के दुपक गए अब तो गाव वाले हम पर हसत रहे बोली -ठोली बोलत रहे । रोज़ कि कीच -कीच से परेशान हुए के हम घर छोड़ के पाण्डेय जी के पास लखनऊ आये गए। जीजा रेलवे में काम करत रहे ,उन्हे सरकारी घर मिला रहे। हम लोग २० बरस तक साथ -साथ रहत रहे। उनके खाना -पीना ,घर का काम काज और पत्नी धरम निभावत रहे ।
अब जीजा रिटायर हुए गए है । अब वो चाहत है कि वो घरे लौट जाये, सीमा दीदी भी अपने ससुराल चली गयी। हम तो अपने घर लौट नहीं सकित है । बाल -बच्चा भी बड़े -बड़े हुए  गये है । सब अपने बाप के पास राहत है । हमरी सूरत भी नहीं देखना चाहतें हैं । हमसे नफरत करत हैं। "हमरी ज़िन्दगी अधूरी है। सपने भी अधूरे हैं" ------कहकर मनोरमा रोने लगी ।
छाया ने कहा , ये पुरुष भवरें है , जब तक फूल मैं जीवन है ,रस है रसपान करते है फिर उड़ जाते है, दूसरे फूल के पास……………तुम भोली -भली ग्रामीण महिला ,तुमने अपनी आगे के ज़िन्दगी का कोई प्रबंध नहीं किया। तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है। पाण्डेय जी  ने , ना तो सीमा से तलाक लिया और ना ही तुमसे विवाह किया है । इतने वर्षो में तुमने भी कोई जमा -पूँजी नहीं बनाई । खाली -खाली जेब कैसे आगे का निर्वाह होगा। कभी भविष्य का सोचा है ।
यही तो बात है छाया दीदी, हम का जानत रहे कि ज़िन्दगी के इस मोड़ पर , हमका मझधार मा छोड़े का सोचें गे । अब तो हम कुछ कर नहीं सकित है । बस आप लोगन के सहारे ज़िन्दगी गुजार देब ।
पुरुष सत्तातमक व्य्वस्था में आज भी नारी के दशा बहुत अच्छी नहीं है।

सीमा हो या मनोरम दोनों ठगी गयी। एक पुरुष द्वारा-----------------------------------------

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