Saturday, May 31, 2014

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श्री मैथलीशरण गुप्त  द्वारा  रचित  काव्य   साकेत  के नवम  सर्ग  में  उरिमिला  के विरह -विषाद  की  चरम निदर्शना है। वह  अपने मन  मन्दिर में अपने प्रिय की  प्रतिमा स्थापित  कर  सम्पूर्ण  भोगो  को  त्याग कर अपना  जीवन योगमय  बना लेती  है  यथा ------

मानस  मन्दिर  में सती ,पति  की प्रतिमा थाप
जलती  थी उस  विर.ह में ,बनी आरती   आप
आँखो  में प्रिय मूर्ति  थी ,भूले  थे  सब   भोग
हुआ  योग से  भी  अधिक ,उसका  विषम  वियोग।


हाँ ,स्वामी  कहना  था  क्या -क्या
कह  न  सकी ,कर्मो का  दोष।
पर  जिसमे  सन्तोष  तुम्हें  हो
मुझे  है सन्तोष

देवी उरिमिला  से    कम  श्रीमती जसोदाबेन  का चरित्र ,साहस  पवित्रता  सहजता  पति व्रत धर्म  सेवा  और त्याग  कम नही  है। उनका व्यक्तिव  सदा  सम्माननीय  और पुजयनीय  है।

चुनाव  आयोग  के स्पष्ट   दिशा -निर्देशो  के  कारण  मोदी  ने  नामांकन  के समय  पत्नी  के  कालम  में  श्रीमती  जसोदाबेन  का  नाम उल्लेखित  किया है। इसके  पूर्व  के  चुनाव  में  यह  कॉलम  ख़ाली  छोड़  दिया  करते थे। हमारी  भारतीय  संस्कृति  में  जब  पुरुष  कोई अच्छा  काम 

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