Tuesday, November 5, 2013

यह भी दुकाने है। ....... भाग -२

अमूल की छाछ का क्या दाम है गुडगाँव में ????मैंने दुकानदार से पूछा ।  ५०० ग्राम के पैकेट का दाम १० रुपया है दुकानदार ने जवाब दिया । हमनें कहा , अरे भाई पैकट पर तो ९.५० पैसा अंकित है । हाँ है तो , पर १० रुपया में हे मिलता है । हमने कहा , यह तो बात ठीक नहीं है । यह माना कि ५० पैसे का सिक्का प्राय: चलन से बाहर हो गया है परन्तु जब ग्राहक दो या चार पैकेट खरीदता है तो क्यों ना बाकी रेजगारी, जो १ या २ रुपया होता है । उसे दुकानदार वापस क्यों नहीं करता । यह विचार मेरे मन में चलता रहा । घर पर जब चर्चा की तो लड़के ने कहा कि आप भी पापा छोटी छोटी बातों को लेकर क्या पीछे पड़ जाते है । हमने कहा बात एक या दो रूपये के नहीं है बात सिद्धांत कि  है। छाछ के रैपर पर छपे टोल फ्री नंबर १८००२५८३३३३ पर वार्ता कि तो ज्ञात हुआ कि अमूल छाछ का विक्रय मूल्य मात्र ९.५० पैसे हे। हमने वजीराबाद की दूसरी दुकान से अमूल छाछ खरीदा तो उसने दो पैकेट का दाम १९ रुपया लिया ।
अब हम पुनः "आंटी जरनल स्टोर " के मालिक श्री कौशल किशोर कुकरेजा के समक्ष उपस्थित हुए । उनसे जब मैंने बातया कि कस्टमर केअर व वजीराबाद कि दुकान की बात बताई और कहा की आप गत एक माह से प्रतिदिन एक रुपया अधिक़ ले रहे है । इसपर उन्होंने झेपते हुए बताया कि कुछ दिनों के लिए कंपनी ने दाम बढ़ा दिये थे । अब तो बात पूरी तरह साफ़ हो गयी थी कि श्री कुकरेजा सबसे अधिक पैसे ले रहे थे । हमारे जैसे ना जाने कितने लोग इनके शिकार हुऐ होंगें। जागो ग्राहक जागो का विज्ञापन अखबारो में टेलीविज़न पर प्रसारित होते रहतें है। इनसे हमें सीख लेनी चाहिये ।
वैसे कुकरेजा साहब काफी सुलझे हुए, शिक्षित, लग भग साठ वर्षीय नागरिक है। इनके पिता १९४८ में भारत- पाक बटवारे के समय दिल्ली आये थे । किसी तरीके से रोजगार करके अपने परिवार का पालन पोषण किया।
कौशल किशोर जी गुडगाँव में एक मकान कि बेसमेंट में जनरल स्टोर चलते है । वह खुद प्रातः ८ बजे सहपत्नीक आकर स्टोर खोलते है । रात्रि ८ बजे तक दोनों कड़ी मेहनत करते है। दूध , ब्रेड ,बटर तथा अन्य घरेलू वस्तुए इनके स्टोर में मिलती हैं । तीन लड़के नौकर रखे है। कॉलोनी के सभ्रांत नागरिक इनके ग्राहक हैं। मोबाइल से आर्डर बुक करके "होम डिलीवरी सेवा  "  के अंतर गत सामान घर पर भिजवा देते है । जिसका वो कुछ पैसा अलग से चार्ज करते है।
जब हमने उनसे इंटरव्यू व छायाचित्र देने को कहा तो उन्होंने मन कर दिया। कहा कि वह प्रचार नहीं चाहते है। दुनिया में कुछ अच्छे और कुछ बुरे लोग होते है । वह किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते है । वैसे बात चीत के  बीच में उन्होंने बाताया कि समय बिताने के लिए ये स्टोर प्रारंभ किया था। परन्तु अब दिन भर कि कसरत से उबगये है । स्टोर बंद करना चाहतेहै । लेकिन लगभग़ ३०००० रूपये मासिक के आये भी छोड़ी नहीं जा सकती है ।
कहने का अर्थ ये है कि औद्योगिक नगरो में बच्चा हो या बूढ़ा, जयादा पढ़ा हो या अंगूंठा -छाप, पुरुष हो या महिला सबको काम है। जो करना चाहते है ।.…………………………………………




1 comment:

  1. nice
    ऐ मेरे आख्नो के पहले सपने , रंगीन सपने मायूस सपने

    एक असफल प्रेमी

    तेरी सूरत जो दिलनशीं की है
    आशना शक्ल हर हसीं की है

    हुस्न से दिल लगा के हस्ती की
    हर घड़ी हमने आतशीं की है

    http://loksangharsha.blogspot.com/

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