Thursday, July 23, 2015

नफस-नफस, कदम-कदम, बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

जहाँ अवाम के खिलाफ साजिशें हों शान से
जहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से
जहाँ पे लफ्जे-अमन एक खौफनाक राज़ हो
जहाँ कबूतरों का सरपरस्त एक बाज हो
वहां न चुप रहेंगे हम, कहेंगे हाँ, कहेंगे हम!
हमारा हक, हमारा हक, हमें जनाब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

यकीन आँख मूँद कर किया था जिनको जान कर
वही हमारी राह में खड़े हैं सीना तान कर
उन्ही की सरहदों में कैद हैं हमारी बोलियाँ
वही हमारी थाल में परस रहे हैं गोलियाँ
जो इनका भेद खोल दे! हर एक बात बोल दे!
हमारे हाथ में वही खुली किताब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

वतन के नाम पर ख़ुशी से जो हुए हैं बे-वतन
उन्ही की आह बे-असर, उन्ही की लाश बे-कफ़न
लहू-पसीना बेचकर जो पेट तक न भर सकें
करें तो क्या करें भला न जी सकें न मर सकें
सियाह जिंदगी के नाम, उनकी हर सुबह-ओं-शाम
उनके आसमां को सुर्ख आफताब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

होशियार! कह रहा लहू के रंग का निशाँ
ऐ किसान होशियार! होशियार नौजवान
होशियार! दुश्मनों कि दाल अब गले नहीं
सफेदपोश रहजनो कि चाल अब चले नहीं
जो इनका सर मरोड़ दे, गरूर इनका तोड़ दे
वह सरफ़रोश आरज़ू वही शबाब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

तस्सल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर
निगाह डाल, सोच और सोच कर सवाल कर
किधर गए वो वायदे? सुखों के ख्वाब क्या हुए?
तुझे था जिनका इंतज़ार वो जवाब क्या हुए?
तू इनकी झूठी बात पर, न और ऐतबार कर
कि तुझको सांस-सांस का सही जवाब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

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