उम्मीदे बीते बरस दो,
ताण्डव शिव का केदार घाटी
ने देखा |
प्रलय सम तीव्र प्रवाह,
जलधारा ने बोल्डरो को फेका
|
इतिहास में बदल गया,
धरा के स्वरूप का भूगोल |
धरती धसी,पहाड़ खिसके,
सब कुछ हुआ
डावाडोल |
जिन्दगी बिखरी,टूटे तिनके
की तरह
मनुज बेमोत मारा |
खिलोने की तरह टूटा
विकास का ढाचा,हिल गयी धरा |
खील से खिल गए भवन
धाराशायी हो गए आश्रय सभी |
बिछुड़ गये अनगिनित
परिवारजन,
जो न मिले
फिर कभी |
टूट गये सुनहरे स्वपन,
गयी बिखर –बिखर |
हताशा और निराशा सभी के
खड़े हो गये उच्चतम शिखर |
लोगो ने जाना कि अपनों के
जाने का क्या गम होता है
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