Friday, July 10, 2015

उम्मीदे बीते बरस  दो,
ताण्डव शिव का केदार घाटी ने देखा |
प्रलय सम तीव्र प्रवाह,
जलधारा ने बोल्डरो को फेका |
इतिहास में बदल गया,
धरा के स्वरूप का भूगोल |
धरती धसी,पहाड़ खिसके,
सब कुछ  हुआ  डावाडोल |
जिन्दगी बिखरी,टूटे तिनके की तरह
मनुज  बेमोत मारा |
खिलोने की तरह टूटा
विकास का  ढाचा,हिल गयी धरा |
खील से खिल गए भवन
धाराशायी हो गए आश्रय  सभी |
बिछुड़ गये अनगिनित परिवारजन,
जो  न  मिले फिर   कभी |
टूट गये सुनहरे स्वपन,
गयी बिखर –बिखर |
हताशा और निराशा  सभी के
खड़े हो गये उच्चतम  शिखर |
लोगो ने जाना कि अपनों के
जाने का क्या गम होता है

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