चिल -चिलाती सी धूप *************
=================================
चिल -चिलाती सी धूप,
तीखे खंजर सी काटती है देह।
नीले -नीले अंबर में जाते है
गुजर जाते खाली -खाली मेघ।
बादलों ने की है बस,क्यों
मैदानी इलाकों से है बेवफ़ाई।
झूम के बरसे पर्वतो पर,
पहाड़ों पर ही बस बरखा आई।
नालियों में लोटते पोटते है
प्राया नर -मादा स्वान
अगस्त में मई -जून सी गर्मी,
ऊष्मा से होते है परेशान।
शूकर,महिषा लोटते कीचड़ में,
- सड़ी गरमी से परेशां इन्सान।
पथरा गए है सूखे नयन,
काल -कलवित हुए अरमान।
=================================
चिल -चिलाती सी धूप,
तीखे खंजर सी काटती है देह।
नीले -नीले अंबर में जाते है
गुजर जाते खाली -खाली मेघ।
बादलों ने की है बस,क्यों
मैदानी इलाकों से है बेवफ़ाई।
झूम के बरसे पर्वतो पर,
पहाड़ों पर ही बस बरखा आई।
नालियों में लोटते पोटते है
प्राया नर -मादा स्वान
अगस्त में मई -जून सी गर्मी,
ऊष्मा से होते है परेशान।
शूकर,महिषा लोटते कीचड़ में,
- सड़ी गरमी से परेशां इन्सान।
पथरा गए है सूखे नयन,
काल -कलवित हुए अरमान।
No comments:
Post a Comment