पहाड़ों का पानी व जवानी ********(
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कहावत है कि,
पहाड़ों के काम नही आता,
पहाड़ों का पानी है।
बरसात में बन के क़हर टूटता,
पहाड़ों का पानी है।
न बचती है जिन्दगी,
बहा ले जाती है,
घरों की निशानी है।
न ही काम आती है,
पहाड़ों की जवानी है,
पहाड़ों के जवानों का,
पलायन अभी जारी है।
वहाँ के लोगों को,
वहाँ काम नही मिलता,
पलायन उनकी लाचारी है।
सरकारी आंकड़ों में ख़ुशहाली,
सब सजावटी है,
अकसर आंकड़े सच्चे नही होते,
ख़ुशहाली का दावा दिखावटी है।
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कहावत है कि,
पहाड़ों के काम नही आता,
पहाड़ों का पानी है।
बरसात में बन के क़हर टूटता,
पहाड़ों का पानी है।
न बचती है जिन्दगी,
बहा ले जाती है,
घरों की निशानी है।
न ही काम आती है,
पहाड़ों की जवानी है,
पहाड़ों के जवानों का,
पलायन अभी जारी है।
वहाँ के लोगों को,
वहाँ काम नही मिलता,
पलायन उनकी लाचारी है।
सरकारी आंकड़ों में ख़ुशहाली,
सब सजावटी है,
अकसर आंकड़े सच्चे नही होते,
ख़ुशहाली का दावा दिखावटी है।
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